चांद से गुजारिश कविता

Last Updated on October 18, 2019 by Abhishek pandey

चांद से गुजारिश

चांद का बदलना जारी
अब चांद संभल जा आखिरी चेतावनी।

चांद एक रोटी का टुकड़ा नजर आता है,
और आधा चांद नजर आता किसी से छीना झपटी में किसी का खाया हुआ हिस्सा,
चांद सावधान हो जा
तेरी तरफ बढ़ते इंसानी कदम
छुपा के रखना अपना पानी
इतना खुदगर्ज इंसान
लगातार जलाए जा रहा है कार्बन
हे चांद! तूने तो देखा होगा न धरती को हंसते खिलखिलाते
तू तो वहां से देख रही होगी
प्रदूषण से डगमगाती धरती
उसके बुखार की ताप
सुना है कि कुछ इंसान आए थे तुम्हारे पास
तुम्हें भी पॉलिथीन का दे गए उपहार।
डर मत चांद
न छुपना अब बादलों में
ले ले एक पेन
आकाश के पन्नों पर
लिख दे अपनी व्यथा
लिख दे पीड़ित धरती की कथा
दिखा दे इंसान को आइना
उसके भयानक अंत का,
फिर भी न सुधरे इंसान
तो भगवान से लगा दो गुहार
बचा लो मेरी इकलौती धरती को
प्रदूषण के कहर से!
मैं पुकार रहा हूं
अधमरा इंसान!

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 अभिषेक कांत पांडेय

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Abhishek pandey
Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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