बीमारी है बार बार सेल्फी खींचना

Last Updated on September 18, 2016 by Abhishek pandey

अभिषेक कांत पाण्डेय ‘भड्डरी‘

दो तीन वर्षों में सोशल मीडिया, व्हाटसअप में खुद से खींची गई तस्वीर यानी सेल्फी का चलन तेजी से बढ़ा है। सेल्फी की दीवानगी के चलते दुर्घटना में मौत होने की खबरों में भी इजाफा हुआ है। जुनून की हद तक खुद को स्मार्ट और खतरनाक तरीके से सेल्फी लेने की चाहत के कारण अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं आज के युवा। रिसर्च बताते हैं कि बार-बार सेल्फी खींचना और उसे सोशल मीडिया में पोस्ट करना एक तरह की बीमारी है। रिसर्च से यह बात सामने आई है कि अगर आप एक दिन में तीन से अधिक सेल्फी खींचकर सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैं तो सावधान हो जाइये, ये शुरूआत है, कहीं आप खुद को संुदर, स्मार्ट और अपने को महत्व दिये जाने को लेकर चिंतित तो नहीं रहते हैं। इसलिए हो सकता है खुद को अलग और विशेष बताने के लिए खुद की फोटो पोस्ट करना और उस पर कमेंट और लाइक पाना आपकी चाहत, मनोवैज्ञानिक बीमारी का रूप तो नहीं ले रही है। ऐसी खबरें अक्सर सुनते हैं कि अच्छी सेल्फी लेने के चक्कर में पहाड़ से फिसलने पर मौत हो गई या नदी के किनारे सेल्फी लेने के चक्कर में एक शख्स ने जान गंवा दी।

विज्ञापन का आकर्षण

  आधुनिकता हमारे अंदर हावी होती जा रही है। जैसे-जैसे तकनीक विकास कर रही है, वैसे-वैसे हम अधिक सुविधा संपन्न होते जा रहे हैं। बाजारवाद के कारण लुभावने विज्ञापन ने पहले हमें बिना वजह के किसी उत्पाद को इस्तेमाल करने की जरूरत पैदा की। फिर विज्ञापनों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण, रंग गोरा करने वाली क्रीम से लेकर स्पोर्ट बाइक तक की बेवजह जरूरत हमें होने लगी। यानी अब लोग खुद को सुंदर और स्मार्ट बनाने के चक्कर में इन काॅस्मेटिक प्रोडेक्ट के गुलाम होते चले जा रहे हैं। 80 के दशक के पहले लोग नए फैशन व स्टाइल को दिखाने के लिए महीनों बाद कहीं किसी शादी या सामाजिक इवेंट में ही खुद को आकर्षक रूप में दिखाने का अवसर मिलता था। वहीं अब इंटरनेट के इस युग में सेल्फी के जरिए खुद को सुंदर व स्मार्ट दिखाने के लिए दिनभर सेल्फी खींचकर पोस्ट करते रहते हैं। यहां तक की किसी रेस्टोरेंट में डिनर की तस्वीर या गार्डन में पौधों को पानी देते हुए कोई तस्वीर पोस्ट कर खुद को सुपर लगाने की मानसिकता में घिरे रहते हैं। साॅइकोलाजिस्ट प्रमोद कुमार यादव इस बात को जोर देकर कहते हैं कि अपनी फोटों बार-बार तब तक खींचना व डिलिट करते रहना कि जब तक खुद की एक बेहतर तस्वीर न खींच जाए। ये हरकत एक तरह से केवल खुद की चिंता के बारे में बताता है। बार-बार सेल्फी खींचने की आदत एक तरह से मनोविकार है। खुद को सर्वश्रेष्ठ लगाना और अपनी तारीफ सुनना ही अच्छा लगता है।

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देह की सुंदरता की होड़

सेल्फी ने आंतरिक सुंदरता की जगह बाहरी सुंदरता को बढ़ावा दिया है। जो सेल्फी में जितना सुंदर दिखेगा, वह उतनी ही ज्यादा लाइक व कमेंट पाएगा। इस कारण से आज के युवा सेल्फी में खुद को गोरा व आकर्षक बनाने के लिए कई तरह के एप्स का सहारा  लेते हैं। इन ऐप्स से सेल्फी को एडिट कर बनावटी रूप से खुद को सुंदर व आकर्षक बनाते हैं। वह सेल्फी के आकर्षक के कारण लोग वास्तविक सुंदरता के साथ मानवीय मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। इंसान सेल्फी की वजह से सेल्फिश यानी स्वार्थी होत जा रहा है। हाथ मे ंमोबाइल फोन और फिर बार-बार खुद की फोटो खींचना, अपनी तस्वीर को बार-बार देखना लोगों को मानसिक रूप से बीमार और संवेदनहीन बना रहा है। अभी हाल ही में दिल्ली की एक व्यस्त सड़क पर दिन में एक व्यक्ति को टैम्पों ने टक्कर मार दी, वह आदमी सड़क के किनारे तड़पता रहा, वहां से आने-जानेवाले लोगों में से किसी ने मदद नहींे की। वहां से गुजरते हुए एक रिक्शा चालक ने घायल आदमी की जेब से मोबाइल निकालकर चला गया। मानवता को शर्मसार करने वाली यह घटना सीसीटीवी में कैद हो रहा था, घंटेभर बाद किसी ने उसे अस्पताल पहुंचाया और तब तक बहुत देर हो चुकी थी, रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

अकेले जीने की चाहत     

जैसे-जैसे हम संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर जा रहें, वैसे-वैसे रिश्ते नातों को भी उतना तव्वजों नहीं दे रहे हैं। इस कारण से लोग अकेले जीना पसंद करने लगे, उन्हें दूसरे के लिए काम करना और उनका अपनी जिंदगी में इंटरफेयर करना अच्छा नहीं लगता है, चाहे वे उनके मां-बाप ही क्यों न हो। इस तरह के लोग शादी के बाद अपने मां-बाप के साथ रहना पसंद नहीं करते है, बहू की जिद हो या बेटे की मजबूरी। आखिरकार औलाद अपने बुजुर्ग मां बाप को ओल्ड एज होम में छोड़ आते हैं, ऐसे औलाद अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचते हैं।

कहीं आप सेल्फी के शिकजें में तो नहीं

खुद को सुंदर दिखाने की होड़ में आप बार-बार सेल्फी खींचते हैं। वहीं खुद के लुक से आप संतुष्ट नहीं है और इस कारण से बार-बार अपना हेयर स्टाइल बदलते हैं, बालों को कलर करते हैं, तरह-तरह की क्रीम का प्रयोग चेहरे पर करते ताकी आप और गोरे हो जाएं। यहां तक की आप प्लास्टिक सर्जरी तक करवाने के बारे में सोचने लगते हैं, तो सावधान हो जाइए आप सेल्फी कि शिकजें में है। साइकोलाॅजिस्ट का मनना है कि आप कहीं बाहर जाते हैं तब डेंजर जोन में सेल्फी लेने का मन करता है, ताकी आपकी सेल्फी सबसे अच्छी हो और इसी जुनून की हद में आप संकरे जगह पर, पहाड़ के किनारे, नदी के डेंजर जोन की तरफ या ऊपर किसी खंडर व जर्जर इमारत को सेल्फी लेने की लिए चुनते हैं, तो यकीनन ही आप खुद को मुसीबत में डाल देंगे, क्योंकि यह लक्षण सेल्फीटिज रोग का है।

क्या है सेल्फीटिस रोग

अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन ने बताया कि अगर आप एक दिन में तीन से अधिक सेल्फी खींचते हैं, तो आप यकीनन बीमार हैं। इस बीमारी का नाम है सेल्फीटिस है। इस बीमारी में इंसान पागलपन की हद तक अपनी फोटो लेने लगता और उसे लगातार सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है। इस कारण से उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है और उसकी निजता खत्म हो जाती है। वह एंजाइटी के गिरफ्त में आज जाता है और आत्महत्या तक करने के बारे में सोचने लगता है।खुद पर नहीं रहता कंट्रोल    रिसर्चर  की माने तो जरूरत से ज्यादा सेल्फी लेने की इच्छा के चलते ‘बाॅडी डिस्माॅर्फिक डिसआर्डर‘ नाम की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में खुद को लगता है कि वह अच्छे नहीं दिखते हैं। वहीं काॅस्टमेटिक सर्जन का यह भी कहना है कि सेल्फी के इस दौर में कास्मेटिक सर्जरी करानेवालों की संख्या जबर्दस्त इजाफा हुआ है, जो बेहद चिंता का विषय है। वहीं साइकोलाॅजिस्ट का कहना है कि खुद पर कंट्रोल न होने के कारण बार-बार सेल्फी लेने की समस्या को हलके में न लें। इस तरह की समस्या हो तो किसी अच्छे साइकोलाॅजिस्ट को दिखाएं और परामर्श लेने के कुछ सप्ताह या अधिक से अधिक महीने भर में इस बीमारी से छुटकारा मिल सकता है। फैक्ट फाइल-आॅक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार सेल्फी शब्द साल 2013 में दूसरे शब्दों की तुलना में 1700 अधिक बार प्रयोग हुआ है।-सेल्फी स्टिक को साल 2014 में टाइम मैगजीन ने सबसे उम्दा अविष्कार बताया था।-अप्रैल 2015 में समाचार ऐजेंसी पीटीआई के हवाले खबर में कहा गया कि साल 1980 को यूरोप की या़त्रा पर गए जापानी फोटोग्राफर ने सेल्फी स्टिक का अविष्कार किया था। उन्हें अपनी पत्नी के साथ फोटों खंचवाने के लिए किसी को कैमरा देना पड़ता था। एक बार उसने अपना कैमरा एक बच्चों को अपनी फोटो खींचने के लिए दिया और वो कैमरा लेकर भाग गया। खुद व पत्नी की फोटो एक साथ खींचने की चाहत ने एक्सटेंडर स्टिक को जन्म दिया। जिसे साल 1983 में पेटेंट कराया गया और आज के दौर में इसे सेल्फ स्टिक कहा जाता है।—————————————————————————-

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Abhishek pandey
Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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