बेटी बचाओ पेड़ लगाओ एक ऐसा गांव जहां बेटी पैदा होने पर लगाया जाता है पेड़

Last Updated on October 28, 2019 by Abhishek pandey

बेटी बचाओ, पेड़ लगाओ: एक ऐसा गांव जहां बेटी पैदा होने पर लगाया जाता है पेड़

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बिहार से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर नवगछिया से थोड़ा आगे चलेंगे तो पहुंचेंगे मदनपुर चौक। इस मदनपुर चौक से नीचे उतरकर तीनटंगा जाने वाले रास्ते पर करीब 4 किलोमीटर आगे बढ़ने पर एक साइन बोर्ड दिखाई देगा। इस पर लिखा है-“विश्वविख्यात आदर्श ग्राम धरहरा में आपका हार्दिक स्वागत है।” यह गांव विश्वविख्यात है या नहीं यह तो तय नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि यह पिछले 3 साल से चर्चा में जरूर है।
धरहरा गांव की एक खास परंपरा रही है। इस गांव में बेटियों के जन्म पर कम से कम 10 पेड़ लगाने की परंपरा है।

बिहार का यह गांव सबको सीख देता है

यह परंपरा कब शुरू हुई इसे लेकर भी कई मत हैं। धरहरा गांव बिहार के प्रमुख शहर भागलपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर है। गांव की निवासी शंकर दयाल सिंह बताते हैं कि हमारे पुरखों के समय आस-पास के गांव में बेटियों के जन्म के समय उन्हें अक्सर मार दिया जाता था। इसकी एक बड़ी वजह दहेज का खर्च था। ऐसे में उनके गांव के पूर्वजों ने यह रास्ता निकाला की बेटी का स्वागत किया जाएगा लेकिन उसके लालन-पालन शिक्षा और दहेज का खर्च जुटाने के लिए उनके जन्म के समय फलदार पेड़ लगाए जाएंगे। गांव के एक किसान राकेश रमण कहते हैं पर्यावरण संरक्षण भ्रूण हत्या रोकथाम जैसे बातें हमने सुनी थी लेकिन हमारा कम खर्चीला तरीका इस दिशा में इतना प्रेरणादाई भी है इसका भान हमें नहीं था।

धरहरा गांव के लिए बेटियां हैं धरोहर

इस गांव में आशा के रूप में काम करने वाली नीलम सिंह बताती हैं कि इस परंपरा ने ही उन्हें एक लावारिस बच्ची को अपनाने का हौसला दिया। वे कहती हैं कि धरहरा के लिए बेटी है धरोहर।
खास बात यह है कि अगर किसी के पास जमीन नहीं है तो उसे पेड़ लगाने की परंपरा निभानी पड़ती है। मजदूर वचन देवदास ने यही किया। उन्होंने बताया कि मेरे पास रहने के अलावा जमीन नहीं है लेकिन मैंने अपनी दोनों बेटियों के जन्म के बाद गांव की ठाकुरबाड़ी में तेल लगाकर गांव की परंपरा निभाई। वचन देव जैसे लोग परंपरा तो निभा लेते हैं लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर लगाने के कारण इन पेड़ों से उन्हें बेटी के लालन-पालन में कोई मदद नहीं मिलती। राजकुमार पासवान बताते हैं कि बगीचे लायक जमीन नहीं रहने के कारण उन्होंने घर के आंगन में ही पेड़ लगाकर इस परंपरा को निभाया।
चर्चा में आने के बाद प्रशासन ने इस गांव को एक आदर्श गांव घोषित किया है।
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