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मन का अंकुर

मन का अंकुर फूट जाने तक
मई प्रतीक्षारत हूँ
अपने अस्तित्व के प्रति
ध्यैय है मुझे मिटटी के व्यवहार से,
जल के शिष्टाचार से

अंकुरित होने तक
अपने अस्तीत्व के प्रति
मझे सावधान रहना है
आंकना है मुझे
मिटटी में जल की संतुलित नमी को
asntulit होने पर
मै सड़ सकता हूँ
पुराने विचारो के दीमक मै
कहीं मैं दब न जाऊं
नवीनता अवशोषण मै
अंकुरित होने से पहले
सत्य की प्रकाश
मुझे बचा सकती है
टूट जाने से पाले
फूटने दो मेरे मन का अंकुर
मुझे santulit होने दो
vecharo के bech me







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Abhishek pandey

Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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