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हम पिंजड़ों में

हम सब ने एक नेता चुन लिया
उसने कहा उड़ चलो
ये बहेलिया की चाल है
ये जाल लेकर एकता शक्ति है।
हम सब चल दिये नेता के साथ
नई आजादी की तरफ
हम उड़ रहे जाल के साथ
आजादी और नेता दोनों पर विष्वास
हम पहुंच चुके थे एक पेड़ के पास
अब तक बहेलिया दिखा नहीं
अचानक नेता ने चिल्लाना शुरू किया
एक अजीब आवाज
कई बहेलिये सामने खड़े थे
नेता उड़ने के लिए तैयार
बहेलिये की मुस्कुराहट और नेता की हड़बड़हाट
एक सहमति थी
हम एक कुटिल चाल के षिकार
नेता अपने हिस्से को ले उड़ चुका था
बहेलिया एक कुषल षिकारी निकला
सारे के सारे कबूतर पिंजड़े में,
हम सब अकेले।
इन्हीं नेता के हाथ आजाद होने की किष्मत लिए
किसी राष्ट्रीय पर्व में बन जाएंगे शांति प्रतीक
फिर कोई नेता और बहेलिया हमें
पहुंचा देगा पिंजड़ों में।

                 अभिषेक कांत पाण्डेय

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Abhishek pandey

Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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