मन का अंकुर
Last Updated on March 22, 2011 by Abhishek pandey मन का अंकुर फूट जाने तकमई प्रतीक्षारत हूँअपने अस्तित्व के प्रतिध्यैय है मुझे मिटटी के व्यवहार से,जल के शिष्टाचार सेअंकुरित होने तकअपने अस्तीत्व के प्रतिमझे सावधान रहना हैआंकना है मुझेमिटटी में जल की संतुलित नमी कोasntulit होने परमै सड़ सकता हूँपुराने विचारो के दीमक मै कहीं…