मन का अंकुर

Last Updated on March 22, 2011 by Abhishek pandey मन का अंकुर फूट जाने तकमई प्रतीक्षारत हूँअपने अस्तित्व के प्रतिध्यैय है मुझे मिटटी के व्यवहार से,जल के शिष्टाचार सेअंकुरित होने तकअपने अस्तीत्व के प्रतिमझे सावधान रहना हैआंकना है मुझेमिटटी में जल की संतुलित नमी कोasntulit होने परमै सड़ सकता हूँपुराने विचारो के दीमक मै कहीं…

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विरासत

Last Updated on January 30, 2011 by Abhishek pandey कई बार चुनाव जीतेंहर बार आ बैठें घोसले में बच्चों को सिखाया राजनीति के दाव-पैतरे क्योंकि उनके बाद उन्हें संभालनी थींविरासत की सत्ताक्योंकि देश को चलन था वंशो की बैशाखी पर। अभिषेक कान्त पाण्डेय

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कल्पना

Last Updated on January 30, 2011 by Abhishek pandey आधुनिक विकिरण सेनिकली एक नई उर्जा।उड़ान भरी वह किरणजिसने छू लियाकल्पना के अन्तरिक्ष कोवह आंसू परलिपि राख़ नहींउर्जा है अणु परमाणु कीकैसे गिरती ये बंदेनवह जो चमक उठेगी नभ में।हाथ में कंगनदो चुटकी सेंदूर केवल लक्ष्य नहींनयी रह नयी चाह हैअब यही। अभिषेक कान्त पाण्डेय

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भूख

Last Updated on January 30, 2011 by Abhishek pandey ankho ki atal gahriyon mechipi hai chah zevan kisaundryta ke abimb menchah nahi kisi bimb kiitihas ke panne jahkaten hainbhavishya ke gart meintab vartman ke man meinuthta bas ek hi sawal bhookhe pet ki roti kahan?

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तिरंगा कहता है

Last Updated on January 30, 2011 by Abhishek pandey ये तिरंगा कहता है सुन लो भारतवासी देश के खातिर परवानो ने चूम लिया फासी बहुतो की क़ुरबानी ने दी हमें आज़ादी, आज़ादी की कीमत पहचानो न करो इसकी बर्बादी । ये देश -शहीदों की भूमि हैं, क्वाबा-काशी ये तिरंगा कहता है सुन लो भारतवासी। स्वार्थी…

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