रूटीन पेड़ों पर टांग दिये गये आइनें बर्बरता की ओट में तय नफा नुकसान के पैमाने नापती सरकारें। चीर प्रचीर सन्नाटा तय है मरना जिंदगियों के साथ। सभ्य सभ्यता के साथ हाथ पे हाथ रख मौन वक्त। पेड़ों पर बर्बता लोकतंत्र झूलता पंक्षी भी आवाक नहीं सुस्ताना पेड़ों पर संसद में चूं चूं रूटीन क्या है आंसुओं का सैलाब बनना या उससे नमक बनाना ताने बाने में मकड़जाल कांपती जीती आधी आबादी दर्द मध्यकाल का नहीं आधुनिकता की चादर ओढ़े मुंह छुपाए रूटीन षब्द की हुंकार लिए ये सरकारें रूटीन ये लालफीताषाही रूटीन लटकती फीतों वाली रस्सियां पेड़ों से, रूटीन हम और आप। तैयार हमें होना रूटीन रूटीन सोच के खिलाफ। अभिषेक कांत पाण्डेय।
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