(कविता मेें मां और मैं।) कोख से जन्म लेते ही ब्रह्मांड भी हमारे लिए जन्म ले चुका होता है जिंदगी का यह पहला चरण मां की सीख के साथ बढता चलता लगातार अपडेट होते हम मां की ममता थाली में रखा खाना हमारी हर ग्रास में मां प्रसन्न होती हम अब समझ गये मां जन्म देती है धरती खाना देती है मां का अर्थ पूर्ण है, हमें जीवन देती और सिखाती है जीना। हर मां वादा करती है कुदरत से हर बच्चे में माएं भरती जीवनराग लोरी की सरल भाषा में। तोतली बातें समझनेवाली भाषा वैज्ञानिक मां मां मेरी डाक्टर भी मां मेरे लिए ईश्वर भी, मां सिखाती सच बोलना। आटे की लोई से लू लू, चिडिया बनाना चिडचिडाता जब मैं, मां बन जाती बुद्ध समझ का ज्ञान देती। नानी की घर की और जानेवाली ट्रेन में बैठे ऊब चुके होते हम शिक्षक बन समझा देती रोचक बातें कैसे चलती ट्रेन, कैसे उड़ान भरता हवाई जहाज। अब मेरी मां नानी भी है दादी भी बच्चे बोलते अम्मा तब अपने बच्चों में मुझे अपना बचपन नजर आता। सच में मां ही है मां के हाथों का खाना आज भी लगता है दिव्य भोजन इंद्र का रसोईया नहीें बना पाता होगा मां से अच्छा भोजन। मां
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