ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों में पढाई नहीं होती है। प्राथमिक विद्यालय में मिड डे भोजन में पोषक तत्व गायबहैं। सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढने में उच्च प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को जोड घटाना नहीं आता है। हमारे सरकारी स्कूलोंकी स्थ्िति तब है जब आज छटा वेतन आयोग के अनुसार अच्छा वेतन सरकारी शिक्षक पा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि अखिर यह स्थिति क्यों बनी हुई है। जाहिर है पिछले दशकों से शिक्षा के स्तर पर शिक्षकों के चयन में कोई अपेछ्ति सुधार नहीं हुआ है। आज जब मुफत शिक्षा अधिकार कानून की बात आती है तो भी इस कानून का पालन करने में राज्य सरकार सुस्त दिख रही है।उत्तर प्रदेश में यह स्थ्िाति और दयनीय है। और बात जब टीईटी यनी टीचर एजिबिलिटी टेस्ट के अनिवार्य करने के बाद आज भीमजाक बना हुआ है। जहां एक आज छात्र व शिक्षक अनुपात प्रथमिक स्तर पर एक शिक्षक पर ३० छात्र और उच्च प्राथमिक में ३५ छत्र होने चाहिए लेकिन आज जहां राज्य सरकारें टीचरों की भर्ती प्रक्रिया में उलझें और केवल नकल माफियों को फायदा पहुंचाने में लगी है। टीईटी मेरिट की बात अनसुना कर रही है।
उत्तर प्रदेश बाल मजदूरी में नंबर एक है। बडी शर्म की बात है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व के बच्चों के उनके अधिकार दिलाने के लिए चल रही मुहिम में हिस्सा बनने के बाद भी भारत में बाल मजदूरी में जस तस की स्थिति बनी सरकारें आती हैं और चली जाती हैं।बुनियादी स्तर पर कोई सुधार नहीं कर रही है। बाल मजदूरों की संख्या बढ रही और विडंबना यह है कि इन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए ये बच्चें स्कूल के बाहर काम कर रहे हैं। एक रिपोर्ट की माने तो २२ प्रतिशत बच्चे स्कूल से बाहर हैं और ६९ प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड देते हैं। सरकार की जिम्मेदारी बढ जाती है। जबकि २२ प्रतिशत बच्चे बीच में स्कूल छोड देते हैं।
Apne es article ke madhyam se Uttar Pradesh ke basic shiksha ki bilkul pol khol kar rakh dee hai. Is baat se main 100% sehmat hoon ki U.P mein basic shiksha ke hit mein bahut kuchh kiye jaane ki awashyakata hai. Bilkul sahi likha hai aapne.
Pandey Ji,
Apne es article ke madhyam se Uttar Pradesh ke basic shiksha ki bilkul pol khol kar rakh dee hai. Is baat se main 100% sehmat hoon ki U.P mein basic shiksha ke hit mein bahut kuchh kiye jaane ki awashyakata hai. Bilkul sahi likha hai aapne.