कोयल कूंकेगी अब हर डाली

कोयल कूंकेगी अब हर डाली
पतझड़ आया पेड़ों के पत्ते झड़ते
नया प्रभात, नया जीवन संचार रचते
उदास बैठे कोयल को आस
तेज पवन के झोंकों के बाद
फिर नव संचार बसेगा
वृक्ष बदलेंगे अपने गहने
फिर आएंगी जंगल की हरियाली।

नये पत्ते, नई उमंग के साथ
करेंगे वसूंधर का श्रृंगार
हवा के साथ खनक रहें सूखे पत्ते
मिल जाना चाहते हैं मिट्टी में
बनकर वो खाद
फिर बनेंगे वृक्ष की हरियाली।

जीवन चलता, बदलता हर पल
फिर नये कलेवर में नई हरियाली
पात—पात डालियों से गिर कर
अपना जीवन नेवछावर करना सीखाती
सीख यही बड़ी सबसे
जो आया जाना उसे
धरा का चक्र यही
हर पतझड़ के बाद हरियाली
कोयल कूंकेगी अब हर डाली

See also  सीबीएसई सचिव द्वारा वेबिनार के अनुसार।

Leave a Comment