पहचानिए अपने विचारों की शक्ति

नेक सलाह पहचानिए अपने विचारों की शक्ति

अभिषेक कांत पाण्डेय

ऐसे ही छोटे विचारों को कसौटी में कसना जरूरी होता है, नहीं तो हम सही और गलत पर विचार नहीं कर पाते हैं। यानी अपने विचारों को पहचानिए और उसे एक जोहरी की तरह परखिए, हो सकता है भविष्य के बुद्ध, महावीर जैन, गांधी, न्यूटन, आइंस्टीन बनना आपके विचारों में हो, बस उसे मूर्त रूप देना भर है।
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विचारों की शक्ति ऐसी है जब तक खुद इसका अनुभव नहीं करते हैं तब तक विश्वास नहीं होता है। अपने मन में आने वाले निगेटिव थिंकिंग को हटाने का यह सर्वोत्तम उपाय है। पॉजिटिव थिंकिंग की एनर्जी जीवन में बदलाव लाता है। लेकिन आपके विचारों में दृंढ़तता और सच्चाई होनी चाहिए। पूर्वाग्रह ग्रसित नहीं होना चाहिए। विचार दिमाग में उत्पन्न होता है लेकिन इसका स्रोत अपका अनुभव होता है। विचार की शक्ति की पहचान कई महापुरुषों ने अपने जीवननकाल में कर लिया और वे अपने सदविचारों के माध्यम से ही लोगों में ज्ञान बांटा।

विचार की कसौटी
विचार जो मानव के जीवन को सकारात्मक दिशा की ओर ले जाने वाला हो, जो इंसान की भलाई में काम आने वाला हो ताकी समाज को सही दिशा मिल सके। विचार को अच्छे और बुरे की कसौटी में कसा जाता है। विचार वही सही होता है, जो अच्छे हो, न कि वे विचार जो मानव के लिए दुखदायी हो। अगर आप शिक्षक हैं तो आपके विचार छात्रों के लिए उपयोगी होगा। सकारात्मक सोच जो आपके व्यक्तित्व में झलकता है, उससे छात्र प्रेरणा लेंगे। निराशा के वक्त आपकी सकारात्मका सोच उन्हें आशा की ओर ले जाएगी। इसी तरह आप चिकित्सक हैं तो आपकी सकारात्मक सोच वाला व्यक्तित्व मरीज के जीवन में जीने की आशा जाग्रत करेगी और वह आसाध्य बीमारियों से अतिशीघ्र ठीक होगा। अगर आप लीडर हैं और आपके विचार देश और मानव के कल्याण से जुड़ा है तो आपके व्यक्तित्व में वह स्पष्ट दिख्ोगा। वहीं जनता आपको आदर्श नेता के रूप में जानेगी। विचार कई कार्य अनुभव से उत्पन्न होते हैं। अहिंसा का विचार अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए गांधीजी के मन में आया और उसे उन्होंने अपने व्यक्तित्व में उतारा और भारत की आाजदी के लिए एक आंदोलन की तरह इस्तेमाल किया। उन्हें सफलता मिली। अंहिसा का विचार महात्मा बुद्ध को भी जाग्रत किया, जब वे भ्रमण के लिए निकले तो उन्होंने इस संसार में चारों तरफ दुख और माया ही पाया। इन सबसे छुटकारा पाने के लिए माया व मोह का त्याग और अहिंसा का पालन करने का विचार उनके मन में आया। इसी तरह ज्ौन धर्म के प्रवर्तक महावीर जैन ने भी अहिंसा के विचार को अपनाया। कहने का मतलब कि विचार अनुभवजन्य है, यानी अनुभव से उत्पन्न होता है। अनुभव से एक विचार या एक विचार से कोई नया विचार मन के पटल पर जब कौंधता है तो वह विचार जीवन को बदल कर रख देता है।
लेकिन जब खुद के फायदे के लिए कोई बात सोची जाती है, भले वह एक आइडिया हो या विचार वे खुद के फायदे या स्वांत: सुखाय तक केंद्रित रहती है। इस तरह के विचार का कोई महत्व नहीं होता है। इस तरह के विचार कोई नया विचार उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इन पर विचार करने वाला व्यक्ति केवल अपने लाभ के प्रति ही केंद्रित रहता है। इसे ऐसे समझे कि अहिंसा का विचार सभ्यता से पहले यानी जब इंसान गुफाओं में रहता था, घुमतंु था तब ये विचार मानव के लिए कोई काम का नहीं था लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य सामाजिक हुआ और व्यवस्थाओं को जन्म होने लगा तो सामाजिक मूल्यों, अनुशासन और नैतिक मूल्यों का विचार आया, जो मानव जाति के विकास के लिए जरूरी था। इसके बाद कानून व्यवस्था का विचार हिंसा और अव्यवस्था को रोकने के लिए आया। विचारों का आदान-प्रदान मानव जाति की सबसे बड़ी पूंजी है। आपके विचार जिस तरह से आपका व्यक्तित्व तय करता है, उसी तरह विज्ञान, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, भूगोल, राजनीति शास्त्र जैसे ज्ञान के क्ष्ोत्र का विकास विचार से ही हुआ है। कई छोटे-छोटे विचारों को सच्चाई की कसौटी में कसने के बाद ही कोई सिद्धांत, नियम या कानून बना। देखा जाए तो मनुष्य विचारों के साथ ही जीता है। पर जरूरी है उसके विचार सही हो, नहीं तो सही और गलत विचार पर निर्णय न लेने के कारण उसका जीवन गर्त में चला जाता है। रावण का विचार स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने की उसकी भूल ने उससे अनैतिक काम कराया, उसने अपनी बुद्धि का उपयोग तो किया लेकिन विवेक की तराजू में नहीं तौला कि उसके विचार उसे अनिष्ट की ओर ले जा रहा है। अंतत: सर्वबुद्धिमान होते हुए भी उसका अंत उसके कुटिल विचारों के कारण हुआ। अब तक आप समझ चुके होंगे कि विचार की पवित्रता बहुत जरूरी है।
विज्ञान से समझे विचारों का महत्व
आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत को प्रकृति के नियम पर परखा तो पाया उसका विचार सही है। उन्होंने साइंस की सबसे बड़ी खोज की। हो सकता है ऐसा विचार कई लोगों के मन में आया हो लेकिन ऐसे लोगों अपने विचार को सही तर्क नहीं दे पाएं हो, इसीलिए वे साइंस की सबसे बड़ी खोज नहीं कर पाएं। विचार जब कौंधता है तो हमें खुद नहीं पता होता है कि जीवन का कौन-सा सत्य खोज लिया है, इसीलिए हमें सही विचारों को पहचानना आना चाहिए। विचार अचानक उत्पन्न होता है? ऐसा नहीं होता है, ये तो उस दिशा म्ों लगतार या उसके विपरीत दिशा में किए गए कार्य के परिणाम के कारण जन्म लेता है, जो अचानक होते हुए भी ये विचार आपके मन-मस्तिष्क और अनुभव से गुजरते हुए विचार के रूप में जन्म लेता है।
गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशनल फोर्स) एक पदार्थ द्बारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्बारा की गई थी, जो उनके अनुभवजनित विचार से उत्पन्न हुआ था। यानी न्यूटन ने पेड़ से गिरते सेब जैसी सामान्य घटना से एक नया विचार उत्पन्न कर लिया कि सेब धरती पर ही क्यों गिरता है, आसमान में क्यों नहीं उड़ने लगता है। उनके इस विचार में उन्हें उत्तर मिला कि धरती खींचती है, यानी धरती में फोर्स है। अपने विचार को उन्होंने गणितीय सूत्र में जांचा-परखा और आश्चर्यजनक रूप से सही पाया। और यह विचार बन गया गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत।
मैंने कहा था न कि विचार से एक नया विचार जन्म लेता है, जब न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को अलबर्ट आइंस्टाइन ने एक नए विचार में बदला वह था सापेक्षता का सिद्धांत। यानी हर ग्रह का अपना समय होता है, वो इस बात पर निर्भर करता है कि उस ग्रह से सूर्य की दूरी कितनी है, उस ग्रह पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण शक्ति कितनी है। यही सापेक्षता का सिद्धांत है, जो समय को विभिन्न कारणों में बांटता है। आइंस्टीन का यह विचार ब्रह्मांड के नियमों पर लागू होता है। न्यूटन ने भी धरती और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण में अंतर बताया और ये विचार आइंस्टीन के लिए नए विचार में तब्दील हुआ, जो सत्य की कसैटी में सही उतरा। आज ये विचार आधुनिक विज्ञान की काया पलट दी। सारे प्रयोग इसी के आधार पर होने लगे। न्यूटन को यह विचार की धरती में गुरुत्वाकर्षण शक्ति है, इसे हो सकता है बहुत लोगों ने उनसे पहले ही जान लिया लेकिन वे अपने विचार को सत्य की कसौटी में उतार नहीं पाए, इसलिए इस सही विचार को वे गलत समझ बैठे। ऐसे ही छोटे विचारों को कसौटी में कसना जरूरी होता है, नहीं तो हम सही और गलत पर विचार नहीं कर पाते हैं। यानी अपने विचारों को पहचानिए और उसे एक जोहरी की तरह परखिए, हो सकता है भविष्य के बुद्ध, महावीर जैन, गांधी, न्यूटन, आइंस्टीन बनना आपके विचारों में हो, बस उसे मूर्त रूप देना भर है।

See also  किंतु -परंतु -अगर- मगर- लेकिन (कविता)

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