13 साल की साक्षी ने गोमूत्र से बनाई बिजली
साक्षी ने ऐसा कारनामा किया है, जो बड़े-बड़े नहीं कर पाते हैं। अपनी छोटी-सी उमर में गोमूत्र से बिजली बनाने की सफलता अर्जित की है। मई में जापान में होने वाले सेमीनार के आयोजनकर्ता ने उन्हें अपने प्रोजेक्ट की प्रदर्शनी के लिए बुलाया है और वहां पर साक्षी लेक्चर भी देंगी।
—————————————————————————————
8वीं में पढ़ने वाली 13 वर्षीय साक्षी दशोरा के एक आइडिया ने उन्हें बड़ी सफलता दिलाई। बेकार समझी जाने वाली गाय के गोबर और गोमूत्र का साइंटिफिक यूज करके, इससे बिजली बनाने में कामयाबी मिली है। इस प्रोजेक्ट का नाम है- ‘इम्पॉर्टेंस ऑफ काउब्रीड इन 21 सेंचुरी’। मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के इंस्पायर अवार्ड ने उनके इस प्रोजेक्ट को अब इंटरनेशनल लेवल पर पहचान दिलाएगी। ये प्रोजेक्ट मई महीने में जापान मे होने वाली सात दिवसीय सेमिनार में प्रदर्शित होगा। वहां साक्षी लेक्चर भी देंगी। साक्षी ने यह प्रोजक्ट अगस्त 2०14 बनाया था, उदयपुर जिले में हुई प्रदर्शनी में छटी रैंक मिला। फिर सितम्बर में डूंगरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में 12वीं रैंक और इसके बाद नेशनल लेवल में दूसरी रैंक हासिल की है। उनसे पूछा गया कि इतनी छोटी-सी उम्र में बिजली बनाने का आइडिया उन्हें कैसे आया? साक्षी बताती हैं, ‘भारत में गायों की संख्या तेजी से घट रही हैं, और कहीं इनका हाल भी भारतीय शेरों जैसा न हो जाए। जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो उसे छोड़ दिया जाता है, जिससे उसकी दुर्दशा हो जाती है। इसीलिए अगर गोमूत्र से बिजली बनने लगेगी तो गायों के दुधारू न रहने पर भी उनकी दुर्दशा नही होगी।’ उनको जब प्रोजेक्ट का आइडिया आया तो टीचर से जाकर इसे शेयर किया। टीचर ने जब यह आइडिया सुना तो उन्होंने ने भी साक्षी का साथ दिया और प्रोजेक्ट बनाने में भरपूर मदद की। साक्षी की मेहनत के साथ टीचर युगल किशोर शर्मा, ललित व्यास और सुशील कुमावत ने साक्षी के इस कार्य को बढ़ावा दिया। साक्षी ने बताया कि गौमूत्र में सोडियम, पोटेशियम, मेग्नीशियम, सल्फर एवं फास्फोरस की मात्रा रहती है। उन्होंने प्रोजेक्ट में एक लीटर यूरीन में कॉपर और एल्युमिनियम की इलेक्ट्रोड डाली, जिसे वायर के जरिए एलईडी वॉच से जोड़ा। बिजली पैदा होते ही वॉच चलने लगी। गौमूत्र की मात्रा के अनुसार बिजली पैदा होगी। गौमूत्र कैंसर सहित अन्य बीमारियों से भी बचा सकता है। गोबर से लेप करें तो तापमान कंट्रोल रहेगा। इससे अगरबत्ती भी बनाई जा सकती है।
साक्षी को गोमूत्र के अंदर कई तत्वों की व्यापक जांच करनी है लेकिन उनके पास जरूरी उपकरण मौजूद नहीं है। साक्षी के पिता पेश्ो से पटवारी हैं और माता गृहिणी हैं। घर की आय केवल 2० हजार रुपये महीना, जिसके कारण से वे गोमूत्र की जांच के लिए महंगी मशीनें नहीं खरीद सकती हैं। साक्षी बताती हैं, ‘अगर उन्हें ये उपकरण मिल जाएं तो वे अपने प्रोजेक्ट को और भी ज्यादा व्यापक बना सकती हैं।’ मई में अपने प्रोजक्ट की प्रदर्शनी के लिए वे जापान जा रही हैं, जहां पर उनके इस प्रोजेक्ट को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलेगी और इस नए तरीके से बिजली उत्पन्न करने की खोज से दुनिया को फायदा मिलेगा।