उपेछित संगम नई कविता

Last Updated on June 13, 2013 by Abhishek pandey

उपेछित संगम            नई कविता                 अभिषेक कान्त पाण्डेय 

संगम की रेती 
रेत के ऊपर गंगा 
दौड़ती, यहाँ थकती गंगा 
अभी-अभी बीता महाकुम्भ 
सब कुछ पहले जैसा 
सुनसान बेसुध।
टिमटिमाते तारें तले बहती, काली होती गंगा
बूढी होती  यमुना।

महाकुम्भ गया 
नहीं हो हल्ला 
भुला दिया गया संगम।
एक संन्यासी 
एक छप्पर बचा 
फैला मीलों तक सन्नाटा 
सिकुड़ गई संगम की चहल 
नहीं कोई  सरकारी पहल है-
चहल-पहल है-
कानों में नहीं संगम 
आस्था है 
वादे भुला दिए गए 
भूला कोई यहाँ, ढूँढ नहीं पाया 
यहाँ था कोई  महाकुम्भ।
सरपट सरपट बालू केवल 
उपेछित अगले कुम्भ  तक।
फिर जुटेगी भीड़ 
फिर होंगे वादे
विश्व में बखाना जाएगा महामेला 
अभी भी संगम की रेती में पैरों के निशान
रेलवे स्टेशन की चीखातीं सीढियाँ 
टूटे चप्पल के निशान 
हुक्मरान ढूंढ़ रहें  आयोजन का  श्रेय।

अब पर्यटक, पर्यटन और आस्था गुम 
महाकुम्भ के बाद 
यादें, यादें गायब वादे, वादे 
धसती रेतीली धरा
सिमटती प्रदूषण वाली गंगा।

आने दो फिर 
हम करेंगे अनशन 
त्यौहार की तरह हर साल 
बुलंद होगी आवाज़ 
फिर खामोशी संगम तट पर 
बस, बास डंडों, झंडों में सिमट चुका संगम 
उपेछित संगम।                                           अभिषेक कान्त पाण्डेय 

Author Profile

Abhishek pandey
Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
newgyan.com Blog include Career, Education, technology Hindi- English language, writing tips, new knowledge information.
See also  आओ हम एक हो जाएं: नेक सलाह
Latest entries

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी में बेस्ट करियर ऑप्शन, टिप्स CBSE Board Exam tips 2024 एग्जाम की तैयारी कैसे करें, मिलेगा 99% अंक