काव्य संग्रह
अभिषेक कांत पाण्डेय
मन को बेचैनकरती कविताओं कासंसार रचनेवाले श्यामकिशोर बेचैन उनयुवा कवियों मेंहैं जो कविताको मिशन केरूप में देखतेहैं। बस सहीसमय पर सहीबातों को कविताके रूप मेंजन समुदाय केसामने सरल वप्रभावी भाषा मेंअपनी बात कहदेने वाली प्रतिभाके धनी हैबैचैन। बैचेन खुद कहतेहैं कि कविताउनके लिए उसनदी के समानहै जो उन्हेंरचनेवाले के साथही पढ़नेवाले कोभी सुखानुभूति देतीहै। श्याम किशोरबेचैन लखीमपुर खिरीजिले के रहनेवालेहैं। भारत केकोने कोने मेंमंचों पर कविताके जरिये अपनीअलग पहचान बनाईहै। गीत, गजल, चौपाई विधा मेंआधुनिक संसार में उपजेसमस्याओं को बखूबीउजागर करती रचनाएंबेचैन की पहचानहै। इसी श्रृंखलामें श्याम किशोरबेचैन की नईकविता संग्रह वन्यजीव और वनउपवन जनमानस कोसमर्पित कविता संग्रह है।इस संग्रह मेंहमारे आसपास वजंगलों में रहनेवाले जीव जंतुओंपर 70 कविताएं हैं, जो हमें सीखतो देती हैवहीं रचनाधर्मिता केउस आयाम कोछूती है जहांपर हर विषयमें वेदना भीछिपी है तोसंवेदना भी। यहजीवन का सत्यहै कि प्रकृतिही हमें पालतीपोसती है लेकिनआधुनकता के दौरमें हम प्रकृतिके अन्य भागीदारोंजैसे जीव जंतुओंऔर पेड़ पौधोंको भूले जारहे हैं। नदिया, जंगल, प्रकृति संसाधनही इस संसारको पालनेवाले हैंजोकि कवि बेचैनकी कविता मेंबार बार बरबसआती है औरचेतावनी देती नजरआती है किहे! मनुष्य अबसावधान हो जाओ, प्रकृति से खिलवाड़नुकसानदायक साबित होगा। कवितामन की उपजहोती है लेकिनजब वह प्रकृतिके सच सेसाक्षात्कार करती हैतो वो कविताइंसान को सीखदे जाती है।इस संग्रह मेंबैचेन जी नेबैल से लोमड़ीतो केंचुए तककी उपयोगिता कोप्रभावशाली शब्दों के साथकविता विधा मेंउतारा है। सर्प, बिच्छी, गिरगिट के प्रकृतिस्वभाव की चेतावनीदेती कविता मनुष्यको सीख देतीहै कि प्रकृतिबूरे कार्यों कादंड देती हैतो वहीं अच्छेकर्मों के लिएपुरस्कार भी देताहै। सरल शब्दोऔर आमजन कीभाषा में जीवजंतुओं और प्रकृतिकी स्वाभाव केबारे में अद्भुतचित्रण किया गयाहै।
शत्रु प्रकृति शीर्षक कवितादेखिये— खून खराबाकरने वाले, आतताईहैवानो के। लालचबैठ गया हैअन्दर, बेकाबू बेईमानों के।
वनों में इंसानोंकी दखलअंदाजी सेउपजने वाले खतरोंको अगाह करतीकविता बेचैन केमन में बैठेउस डर कोबयान करती है,जहां प्रकृतिके साथ खिलवाड़इंसानों की जातिके लिए खतरासाबित होगा। बेचेनवैज्ञानिक दृष्टिकोण के नजरियोंसे वन संपदाऔर वहां केजीव जंतुओं कोउनके इस प्रकृतिआवास से अलगन करने कीसीख देते हैं।इनकी कविता कास्वर कहीं कहींआक्रोशित हो उठताहै लेकिन यहजरूरी है।
एक बानगी देखिए— जीनेदो वन्य जीवोंको वन केमाहौल में। जीनाकिसी भी जीवका दुश्वार नकरो। बंधन सेकिया जैसे शेरभालू को आजाद।आजाद करो सर्पको विचार नकरो।।
चिरइया से जुड़ीपरंपराओं को बयानकरते हैं तोसांप के अस्तित्वको वनों केलिए जरूरी मानतेहैं। कवि काहृदय विशाल हैमगर चेतना केस्वर को लिएहुए वे मनसे नहीं कर्मसे जंगल कीसेवा करने कीबीड़ा उठाने कासंकल्प लेता है।लखीमपुर जिले मेंदुधवा नेश्नल पार्कके अंदर केहाल को बयांकरती कविताएं हैं, यहां पर मौजमस्तीके लिए आयेइंसानों को चेतावनीदेती कविताएं हैंतो वहीं जंगलके जीव जंतुओंके लिए इन्हेंयहां शांति सेजीने देने कीसीख भी है—
वन्य शत्रु की सच्चाईशीर्षक कविता की यहबानगी आपके अंतरमनको छू जाएगी— मैं हूं खानेका शौकीन/ पीताहूं व्हिस्की रंगीन।/ समय नहीं करताबेकार।/ रहता हूंहरपल तैयार।/ जबमिलता अवसर।/ मारगिराता हूं हिरनसुअर।
वहीं गधा परलिखी कविता सच्चाईको सामने लातीहै—
न हिंसक न हत्यारा।
फिर भी गधाहै बेचारा।।
अहित किसी काकरें नहीं।
मेहनत से येडरे नहीं।।
बस्ती में बसताहै।
वाहन सबसे सस्ताहै।।
ढेंचू—ढेंचू करता है।
अपनी धुन मेंरहता है।
श्याम किशोर बेचैन काकविता संग्रह हिंदीकाव्य में जनसमुदाय की भाषामें बिल्कुल सरलऔर चित्रित शब्दोंके माध्यम सेजन संदेश देतीहै तो वहींतुक में लिखीकविता उन नयेलोगों को कवितासाहित्य से जोड़तीहै, जो कविताइसलिए नहीं पढ़तेहैं कि उन्हेंकविता क्लिष्ट लगतीहै। यहां परसादगी और संजीदगीदोनों है। छिपकली, गैंडा, चींटी, चूहा, बकराइत्यादि विषयों पर लिखीकविता बताती हैकि बेचैन अपनीविषय वस्तु सामान्यसे सामान्य समझेजानेवाले जीव जंतुओंमें भी खोजलेते हैं।
कविता संग्रह
वन्य जीव औरवन उपवन
मूल्य— 80 रुपये
कवि— श्याम किशोर बेचैन
प्रकाशक— नमन प्रकाशन, 2010 चिन्टल्स