समानांतर हिंदी कविता-श्रीरंग

सन 80 के बाद की दलित आदिवासी एवं स्त्री कविता के विशेष संदर्भ में श्रीरंग की ताजा आलोचना पुस्तक समानांतर हिंदी कविता, वास्तव में 80 के बाद की वास्तविक कविता की प्रकृति को प्रकट करती है एक आलोचक के तौर पर श्रीरंग कि यह आलोचनात्मक दृष्टि बिल्कुल पैन है क्योंकि जिस तरह एक समय आधुनिकता के प्रत्यय को साहित्य के क्षेत्र में इतना ज्यादा खींचा गया था कि उसकी व्याप्ति की सीमा का प्रश्न उठाया जाना जरूरी हो गया था। उसी तरह बाद में समकालीनता की परिधि को कितना बढ़ाया जाए यह सवाल आलोचकों के लिए एक समस्या बन कर उपस्थित हो गया अर्थात जिस तरह आधुनिकता की परिधि में बहुत दूर तक रचनात्मक प्रयासों को समेटना संदिग्ध हो उठा। उसी तरह समकालीनता के दायरे में भी नई काव्य प्रवृतियों को रेखांकित करना एक  घिरी पाटी बात हो गई। दलितों और आदिवासियों स्त्री अस्मिता की अभिव्यक्ति इतनी सशक्त रूप में होने लगी कि उन्हें केवल समकालीन प्रवृत्ति के नाम पर चिन्हित कर पाना संभव नहीं रह गया।
 श्रीरंग की आलोचना का दायरा इन कविताओं के परिपेक्ष में समकालीन कविताओं से किस तरह से और कैसे अपना नया मुकाम बना रही है यह समझना और समझाना वास्तव में एक दुष्कर कार्य है। पहली नजर में साहित्य इसे खारिज कर सकती है लेकिन नूतन दृष्टि रखने वाले श्रीरंग ने आदिवासी स्त्री पर लिखी गई कविता पर अपनी दृष्टि को एक फलक में प्रस्तुत किया है। यह आलोचना पुस्तक वास्तव में साहित्य के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने वाली है।

See also  Who is the writer of Rani Ketki ki kahani in Hindi prose

0 thoughts on “समानांतर हिंदी कविता-श्रीरंग”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top