चलो मन गंगा जमुना तीरे

Last Updated on January 25, 2013 by Abhishek pandey

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संगम शब्द के  उचारण मात्र से हमारे मस्तिष्क में महाकुम्भ की तश्वीर तैर उठती है। इस समय संगम क्षेत्र अपने पूरे रोवाब में है। हर जगह यहाँ संत, महत्मा, आमजन, स्त्री, पुरुष, भजन-कीर्तन -आरती, प्रवचन के साथ पूरी धरा की संस्कृति के साथ भारतीय संस्कृति  का संगम हो रहा है – 

  संगम स्नान में ऐसा सुख है आज
 चलो भाई तीर्थ राज प्रयाग।
        गंगा, यमुना, सरस्वती का ऐसा संगम,
      धुनों पर बज रही हो जैसे सरगम।

संगम तट पर नगर बस चुका  है- अस्पताल, पुलिस स्टेशन, नाव पर पोस्ट बॉक्स भी तैर रही है। चारों ओर का नज़ारा अद्भुत है। शब्दों से बयाँ करना बेईमानी होगी, इस धरा का नज़ारा यहाँ  आकर  ही लिया जा सकता है-

              माघ के बारह वर्षो के बाद कुम्भ में चमक रहा है प्रयागराज।

भारतीय डाक  संगम तट पर 


संत 


अक्षय वट  प्रवेश द्वार 
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महाकुम्भ में  सन्यासी 


संगम का दृश 

संगम का दृश 


संगम का  नजारा देख इस धरती में स्वर्ग की काल्पन साकार होती है अस्था का यह मेला ब्रम्हांड में गौरवशाली प्रतीत होता है – मन कह उठता है चलो मन गंगा जमुना तीरे।

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