New Hindi kavita
मैं कविता क्यों लिखता हूं कि क्योंकि कविता ब्रह्म है, और मैं बार बार हर एक कविता में ब्रहमांड रचता हूं । उस रचनाकार के प्रति समर्पण है जिसने ब्रह्मांड की रचना की और इसलिए भी लिखता हूं कि कविता न सुख देती न दुख, लेकिन यह मेरे होने और मेरे हाथ, दिल, दिमाग और आत्मा के अस्तित्व को एक तारे के तरह बताती कोई कविता आपसे मिलती रहेगी ।
डर (कविता)
एक खामोश समाज
उसमें चुप्पी साधे लोग
पूरा शहर
तमाशा पढ़ता अखबारों में
इन दिनों।
अत्याधुनिक मोबाइल
अत्याधुनिक सभ्यता
अत्याधुनिक जीवनशैली
लोकतंत्रवाला इंसान
चुपचाप।
दरिंदा घूम रहा
पूरब से पश्चिम
उत्तर से दक्षिण
चारों तरफ से
अबोध के साथ
हो रहें अत्याचार
अमानवीय कृत्य
उसकी हर एक चींख
खो जाती सन्नाटे में,
हर सन्नाटे का एक डर
चीरता सन्नाटा
गली, मोहल्लों, पार्क
स्कूल, सुनसान सड़क
स्थानों का डर
अख़बारों, फेसबुक की ख़बरों के साथ/
डर घरों तक तैर जाती
डर जाते
नन्हें हाथों के खिलौने।
अभिषेक कांत पाण्डेय
*कविता*
*प्रेम व ब्रह्मांड*
(प्रेम को समझना ब्रह्मांड को समझने की तरह है, कविता में ब्रहमांड की उत्पत्ति को वैज्ञानिक तरीके से पेश किया गया है ।)
नहीें है कोई आयाम
न दिशा ब्रह्मांड का
प्रेम भी है दिशाविहीन आयामहीन
दोनों में है इतनी समानता
जैसे ब्रहमांड के रहस्य
जानता हो प्रेमी
रात रात जाग गिन जाता है अनगिनत तारे कितना गहरा है संबंध प्रेमी व ब्रह्मांड में
तभी तो प्रेमी करता है प्रेमिका से
चांद सितारें तोड लाने की बातें।
बिलकुल उस ब्रह्मांड वैज्ञानिक की तरह
वह जान लेना चाहता है
हर ग्रह के चांद, सितारों को
अपनी प्रेयसी के लिए ।
गढता है एक नयी कविता
खंगालता है नभ,
मंडल के पार के असंख्य ग्रह नक्षत्र सितारों को
प्रेम के अनंत रस से
समेट लेना चाहता है
ब्रह्मांड -उत्पत्ति की अनंत ऊर्जा को
क्योंकि वह जानता है
गाडपार्टिकल ने ऊर्जा को बदला है पदार्थ में
और वह जानता है
यह तथ्य-
ऊर्जा का संचार जिसमें सौ प्रतिशत है
वही प्रेमी है।
ब्रहमांड का जन्म महाविस्फोट के 1 सेकंड के अरबवें समय में,
प्रेम भी इतने समय में होता है,
प्रेमीयुगल नव ब्रह्मांड सरीखा।
प्रेम रचता हर बार नया ब्रहमांड,
प्रेम सत्य है
ब्रह्मांड भी सच है
एंटी मैटर
उस नफरत की तरह है
ब्रह्मांड को अस्तित्व में आने नहीे देता था।
बस एक सैकेंड में
एंटी मैटर के बराबर से थोडा अधिक,
पाजिटिव मैटर रूपी प्रेम ने रच दिया ब्रहमांड
उस नफरत रूपी एंटी मैटर के खिलाफ
अस्तित्व में आया कई ब्रह्मांड
जिनमें एक हमारा सूरज, धरती।
लैला-मजनू, सोनी-महिवाल उनके किस्से
अभिज्ञानशकुतंलम्, जूलियस सीजर
इस ब्रह्मांड की देन है
देखो ब्रहमांड की और
हर तारें में संचारित प्रेम
ग्रह करते हैं प्रणय परिक्रमा।
दूर आकाश गंगा की रंगीन रोशनी
प्रेम उत्सव मनाती सी
सीखाती इंसानों को प्रेम करना।
…..
हुकूमत की धूप
किताबों में कैद गुजरा वक्त
बेइंतहा ले रहा है।
कुछ कतरन यूं
हवा से बातें कर रहें
बीतने से पहले पढ़ा देना चाहते हैं
हवा को भी मेरे खिलाफ बहका देना चाहते
इस मिट्टी की मिठास
पानी के साथ
मेरी खुशबू बता देना चाहती है।
बे परवाह है इस हुकूमत की धूप
अमीरों के घर पनाह लेती है।
झोपड़ी का चिराग
खेतों तक रौशनी फैला देती है
भटके भ्रमजाल में राहगीर
रास्तें में संभाल लेती है।
रौशनी अंधेरे को चीरती
बगावत की लौ जला देती है।
अभिषेक कांत पाण्डेय मां
(कविता मेें मां और मैं।)
कोख से जन्म लेते ही
ब्रह्मांड भी हमारे लिए जन्म ले चुका होता है
जिंदगी का यह पहला चरण
मां की सीख के साथ बढता चलता
लगातार अपडेट होते हम
मां की ममता
थाली में रखा खाना
हमारी हर ग्रास में मां प्रसन्न होती
हम अब समझ गये
मां जन्म देती है
धरती मां खाना देती है
मां का अर्थ पूर्ण है,
हमें जीवन देती
और सिखाती है जीना।
हर मां वादा करती है कुदरत से
हर बच्चे में माएं भरती जीवनराग
लोरी की सरल भाषा में।
तोतली बातें समझनेवाली भाषा वैज्ञानिक मां
मां मेरी डाक्टर भी
मां मेरे लिए ईश्वर भी,
मां सिखाती सच बोलना।
आटे की लोई से लू लू, चिडिया बनाना
चिडचिडाता जब मैं, मां बन जाती बुद्ध
समझ का ज्ञान देती।
नानी की घर की और
जानेवाली ट्रेन में बैठे ऊब चुके होते हम
शिक्षक बन समझा देती रोचक बातें
कैसे चलती ट्रेन, कैसे उड़ान भरता हवाई जहाज।
अब मेरी मां
नानी भी है दादी भी
बच्चे बोलते अम्मा
तब अपने बच्चों में मुझे अपना बचपन नजर आता।
सच में मां ही है
मां के हाथों का खाना आज भी लगता है
दिव्य भोजन
इंद्र का रसोईया
नहीें बना पाता होगा
मां से अच्छा भोजन।
मां तुम्हारी वजह से ब्रह्मांड को जाना
इस दुनिया के इस समय का साक्षी बना हूं,
मेरे पास मां है।
——————@@
बैक स्पेस (कविता)
अभी अभी एक वोटर ने
दुख प्रकट किया
व्हाट्सएप ग्रुप पर
खूब किया मंथन
इस बार वह धरातल पर रहकर दुखी
खिसक चुकी थी उसकी जमीन
पर कुछ रोज पहले
वोट उसने आम की महिमा पर कुर्बान किया था
पेपर गैंग सालवर
तंत्र का हिस्सा बन।
उसकी मेहनत पर पानी फेर चुके थे
आए दिन होता प्रदेश में वैसा ही खेल
जैसा उनके प्रतिद्वंदी राजनीतिगण खेलते थे
माया के बिना अखिलेश को समझना
योगी होना है
भ्रमहीन वह युवक
पर मजाक नहीं बनना चाहता था सोशल मीडिया पर
पर एक बात समझ में था उसके अंदर
वह लोकतंत्र के अधिकार को जानता था
पर दो शब्दों के मंत्र में
वह मंत्रमुग्ध व आत्ममुग्ध हो चुका था।
पर आज वह पेपर आउट के कारण
उसकी मेहनत व सपने भेंट चढ़ गई
नाकामयाब हुक्मरान के हाथों
सोशल मीडिया पर कह नहीं सकता
मजाक बन जाता
अपने लोगों के बीच।
मेहनती है वह
पर उसे-
अब भ्रष्ट तंत्र में उसके मेहनत का फल
मिलने वाला नहीं
क्योंकि उसने दो शब्दों के एवज में
चुन लिया उन लोगों को
जिन्हें नहीं था सरोकार।
सकारात्मकता लिए वह सारे ग्रुपों से लेफ्ट हो चुका/
दोबारा कामयाब मेहनत के लिए
खोज रहा था बैक स्पेस।
(अभिषेक कांत पांडेय)
—————–
जेसीबी का हृदय परिवर्तन (कविता)
‘जेसीबी’ खोदता-तोड़ता
पुरानी फिल्मों का
जाना पहचाना खलनायक
बुलडोजर का सगा भाई
अब भ्रष्टाचार की जड़ को
उखाड़ फेंकने के लिए तैयार
बदल गया अपना जेसीबी
कुछ दिनों से राजनीतिक प्रयोग से ऊबकर
लिया उसने समाजिक फैसला
उसका हृदय परिवर्तन
साक्षात ब्रह्म है
अपने राजनीतिकरण से आक्रोशित
जेसीबी ने लिया प्रण
वह जन के लिए वजन उठाएगा
वह जन के लिए निर्माण करेगा
वह भ्रष्टाचार की पहचान
अपने भरकम टायरों से करेगा
हर निर्माण की ईट बालू सरिया से
पूछेगा अपनी भाषा में
उसके बनाने में किन भ्रष्ट हाथों का हाथ
जेसीबी तैयार करेगा दस्तावेज
अंत लड़ेगा भ्रष्ट खलनायकों से
अपने दम पर
न्याय माँगेगा न्यायालय से।
(अभिषेक कांत पांडेय)
–@@@@
बूढा़ पार्क (कविता)
हमारे पास का तालाब
पाटकर
विकास के नाम पर
पार्क में बदल दिया गया
पार्क कुछ महीनेभर तक जवान था,
फिर बेगैरत इंसान ने
बूढ़े बाप की तरह छोड़ दिया
उसके हाल पर।
आज पार्क जर्जर हो गया
वहाँ भोंकते कुत्ते
उस तालाब को याद करते
मैंने नजर दौडा़या
दिखायी दिया तालाब की कुर्बानी
असल में पर्यावरण की कुर्बानी।
(अभिषेक कांत पांडेय)
———@@-@
मनोरंजन (कविता)
चंद दिनों से पहले
और चंद दिनों तक
चलता रहेगा मनोरंजन
हँसी ठिठौली
कान में खुसुर फुसुर
मंचों से जमीन तक
गुफाओं से
रंगमंच तक
आधुनिक मानव से मुलाकात
आदिमानव की पहचान
लघु मानव से होगी।
मौजूदा समय का यह लघुमानव
समय में दर्ज होने से घबराता
खुद को साइलेंट मोड में रखकर
खोज रहा तुम्हें।
टीवी का स्क्रीन नहाया है
लघुमानव के लहू से
अधमरा लघु मानव
कविता के डैनो पर
कहरा रहा
उधर दीर्घ मानव का मुखिया
उसकी थिरकती उँगलियाँ
बाँधें
लघुमानवों को
अपने खांचों में फिट कर
दीर्घ मानवों का मनोरंजन कर रहा
संसद की एक सड़क
मरम्मत के लिए तैयार है
उधर,
लघुमानव मनोरंजन के लिए परोसे जाएँगे।
(अभिषेक कांत पांडेय)
_——–@@
रोचक जानकारी लखनऊ की भूलभुलैया के बारे में पढ़ें आखिर क्यों बनाया गया भूलभुलैया उसके पीछे के राज जानने के लिए पढ़ें
11 लक्षणों से स्मार्ट बच्चों को पहचानें
Tips: तनाव से हो जाइए टेंशन फ्री
नई पहल नए भारत की तस्वीर, बदल रहा है-सरकारी स्कूल। आइए सुनाते हैं एक ऐसे सरकारी स्कूल की शिक्षिका की कह… क्लिक करे
मातापिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी आदतें सीखें और अपने पढ़ाई में आगे रहें, लेकिन आप चाहे तो बच्चों में अच्छी आदत का विकास कर सकते …
Tips: तनाव से हो जाइए टेंशन फ्री
नई पहल नए भारत की तस्वीर, बदल रहा है-सरकारी स्कूल। आइए सुनाते हैं एक ऐसे सरकारी स्कूल की शिक्षिका की कह… क्लिक करे
मातापिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी आदतें सीखें और अपने पढ़ाई में आगे रहें, लेकिन आप चाहे तो बच्चों में अच्छी आदत का विकास कर सकते …
टाइम (कविता)
हाँ मैं समय हूँ,
हाँ मैं टाइम हूँ
मैं बदलता भी हूँ
मैं तस्वीरों में झुर्रियां डाल देता हूँ
और तकदीरों को लपेट देता हूँ
हाँ मैं समय हूँ
मेरे साथ जो चलता है
वह मुझे पहचानता है
मैं हर एक पत्रिका में,
मैं हर एक चट्टान में,
मैं हर एक हवा में,
मैं हर एक पानी की बूँद में,
मैं हर एक प्रकाश के कण में,
मैं टाइम (Time) हूँ।
——-
पानी
कल का समुंदर
आज का पानी
धरती के आकाश में है।
कुछ बूंदे उनकी आंखों में कैसे है?
हुक्मरान बदजुबान
उनके जुबान का पानी
लार में तब्दील है
लूटने के लिए तकदीर है
शरीर तो कोल्हू का बैल है।
अबकी बार आंधी नहीं
चाहिए तूफान।
हुक्मरानों के गिलासों में कंपन्न
उनके ओठों को जलाती
उस ज्वालामुखी के केंद्र बिंदु
मेरे बगल में बैठा
हम है।
अभिषेक कांत पाण्डेय