Micmicry kaise kare यदि मुझसे यह पूछा जाता कि आपने अभिनय करने के लिए कहां से प्रेरणा प्राप्त की या यूँ पूछा जाए कि आप को अभिनय करने की प्रेरणा कहाँ से मिली। इस तरह के प्रश्न आज उन कामयाब अभिनेता से पूछा जाता है जो
अभिनय के क्षेत्र में नित्य नए मुकाम हासिल कर रहे हैं। परन्तु मैंने अभी तक कोई खास मुकाम हासिल तो नहीं किया है। यदि मुझसे कोई यह प्रश्न पूछ ले तो मैं सीधा सा उत्तर दूंगा- मिमिक्री से। जी हां! यदि मुझे भगवान ने मिमिक्री करने की कला उपहार में न दी होती तो शायद ही मैं अभिनय के क्षेत्र में आ पाता।
मिमिक्री कला मेरे जीवन की एक सुखद घटना रही है, जब मैं लगभग 10 वर्ष का था, तब मुझे अच्छे से याद है कि मैं किसी भी घटना की बड़ी काल्पनिक और दिलचस्प व्याख्या करता था।
मेरे मोहल्ले के बड़े, बुजुर्ग मुझे रोककर, बैठाकर मुझसे बातें करते मैैं उनके प्रश्नों का उत्तर बहुत मजाकिया लहजे में और बहुत ही तत्परता से देता था। मैं बहुत तेजी से बङे-बङे वाक्यों को काल्पनिक अभिनय करके लोग के सामने प्रस्तुत कर देता, इसी कारण मेरा मोहल्ले में एक उपनाम था, फुटुकलाल इस उपनाम से मैं कभी चिढ़ता नहीं था बल्कि कोई मुझे फुटुकलाल कह कर पुकारता तो मैं उत्तर भी देता था, उनसे मैं बात करता था, मुझे आनंद आता था।
मेरे फुटुक से बोलने के अंदाज से लोग ने मेरा नाम फुटुकलाल रख दिया। यहाँ तक की मेरे घर में भी मेरे पिता, भाई, बहन भी मुझे कभी-कभी फुटकलाल कहकर के पुकारते थे, मैं इस नाम से जीवंत होता चला गया।
इन दिनो मेरे साथ एक और सुखद घटना घटी। एक दिन मैं अपने मोहल्ले में ही टहल रहा था कि वहां एक बिजली मिस्त्री का घर था, जो प्रतिदिन अपने डेक यानी म्यूजिक सिस्टम को ठीक रखने के लिए मिमिक्री की कैसेट बजाता था। उसे मैं लगातार सुनता और घर पर आकर उन आवाजों की नकल करता। एक दिन मुझे मिमिक्री करते हुए मेरे पिता जी ने मुझे सुन लिया और उन्होंने सुनते ही कहा— ये तो फिल्म स्टार जगदीप की आवाज है। उन्होंने कि आवाज बदलने की इस विधा को मिमिक्री कहते हैं। पिता जी ने बताया कि तुम मिमिक्री कर रहे थे, वह प्रतिदिन मेरी मिमिक्री को सुनते और सुधार करवाते कोई भी मेहमान आते मुझे उनके सामने खड़ा कर देते। उनसे प्रेरित करने पर मैंने नाट्य की कार्यशालाओं में भाग लिया और धीरे-धीरे मैं सक्रिय रंगमंच से जुड़ गया।
यहाँ आकर मुझे अपने अंदर के अभिनेता को जानने का मौका मिला और फिर मैं अभिनय के लिए अपनी मिमिक्री की कला को एक टूल्स की तरह इस्तेमाल करने लगा। हालांकि शुरूआत में रंगमंच में मिमिक्री को लोगों ने अलग समझा, जहां तक मेरा यह अनुभव रहा है कि जब भी मैं किसी पारम्परिक किरदार का अभिनय करता, जैसे उस किरदार की अपनी एक विशेष आवाज का पैटर्न हो या उस किरदार की अपनी एक विशेष भाव—भंगिमा हो तो जिसे मैं एक एक्टर होने के नाते इम्प्रूवाइजेशन के जरिए से बड़ी आसानी से अभिनित कर लेता था। पर मेरे साथी कलाकार यही समझते कि मैं मिमिक्री कर लेता हूँ, इसलिए मेरे लिए आसान है। हां मेरे लिए मिमिक्री टूल की सहायता से ऐसा करना आसान हो रहा है परन्तु उतना भी नहीं।
दरअसल जब हम किसी ख्यातिलब्ध व्यक्ति अभिनेता, नेता या किसी भी व्यक्ति की नकल हूबहू करते हैं, तो हमें कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है कि अमुक व्यक्ति के आवाज की वास्तविक टोन क्या है, वह व्यक्ति मुंह के किस भाग में ज्यादा घर्षण करता है और सांसों का इस्तेमाल कैसे करता है? गले, दांत, होंठ, दांत—जीभ को किस प्रकार संयोजित करता है। फिर अंतिम रूप से शब्दों व उसके आवाज की पिच क्या है। शब्दों को कहां-कहां स्ट्रेस देता है। सांस कब लेता है चेहरे की भाव भंगिमा कैसे बनती हैं? पूरे शरीर की संरचना किस प्रकार की होती है। वह किस मनोविज्ञान के माध्यम से अपने को प्रस्तुत करता है। वह किरदार वास्तविक रूप से हमारे मनोविश्लेषण के अंतर्गत आ जाता है।
कभी ऐसा भी होता है कि हम किसी और के द्वारा मिमिक्री करते हुए भी मिमिक्री सीख लेते हैं। क्योंकि हम उस बिंदु को आसानी से पकड़ सकते हैं कि उस व्यक्ति की मिमिक्री कैसे करना है। अभिनय मे मिमिक्रीका विशेष सहयोग होता है। हमें एकल अभिनय या अभिनय में जब अभिनेता एक ही होता या देशकाल वातावरण के अनुसार अभिनय करता है तो वह अभिनय में एक प्रकार की मिमिक्री करने लगता है। एक पल में वह जवान आदमी का अभिनय करता है तो दूसरे पल में ही वह वृद्ध व्यक्ति का अभिनय करने लगता है और अपनी आवाज व शरीरिक संरचना को उसी के अनुरूप ढालता है। इसके लिए उस अभिनेता को अपने जीभ, होंठ, नाक, सांसों, मूड, लार शब्दों के उच्चारण आदि को नियंत्रित करते हुए उस आवाज को बनाता है, जो वास्तविक रूप में काल्पनिक होता है। इसी से वह अभिनय मे विभिन्नता लाता है, यही समानता है अभिनय और मिमिक्री में।
जब इतनी ही समानता है मिमिक्री और अभिनय मे तो एक मिमिक्री कलाकार अच्छा अभिनय तभी कर सकता है जब वह अपने खुद की आवाज को पहचाने यानि की जब वह मिमिक्री करे तो मिमिक्री के सारे सिद्धांत को लागू करें। जब वह अभिनय करे तो मिमिक्री का एक टूल्स की तरह ही इस्तेमाल करे, और एक अभिनेता होने के नाते देशकाल वातावरण के अनुसार अभिनय करे। तभी यह एक सफल अभिनय कर सकता है। Micmicry kaise kare
रेडियों नाटक, डंबिग या वाइस ओवर एक्टर आवाज के उतार चढ़ाव से अभिनय करता है जिसमें मिमिक्री उसकी सहायता करती है। कार्टून किरदार की काल्पनिक आवाज को ईजाद किया जाता है, और वह अभिनय के वास्तविक प्रक्रिया से परिपूर्ण होता है तभी तो कार्टून की आवाज हमे पूर्ण अभिनय का आभास देती है।
जब हम किसी किरदार की मिमिक्री करते है तो उस आवाज के पैटर्न की कॉपी करते है। जैसे जब पंडित जी पूजा करते है तो मंत्री को के उच्चारण की एक पैटर्न होती है उसी हैदराबादी, पंजाबी, ये सब जब हिंदी बोलते है तो इनकी आवाज की पैटर्न और उनके हिन्दी बोलने की शैली की नकल की जाती है। डबिंग के लिए अच्छी मिमिक्री के साथ दृ साथ अच्छी एक्टिंग आनी जरूरी है यही परफ्केशन ही आपको अच्छा एक्टर बनाती है। Micmicry kaise kare
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