Ganga pollution: भारत की कहीं जाने वाली सांस्कृतिक नगरी बनारस जिसे हम वाराणसी और काशी के नाम से भी जानते हैं। गंगा के जल में प्रदूषण की मात्रा अधिक पाई गई है। अस्सी और रामनगर के पास गंगा का जल नहाने लायक भी नहीं है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि BHU की एक शोध रिपोर्ट से यह बात निकाल कर सामने आई है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा एक शोध किया गया की गंगा की स्थिति क्या है? गंगा में प्रदूषण का स्तर कितना है? इस बारे में किए गए शोध चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं जिस पर चिंता करने वाली बात है क्योंकि जल प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया चिंतित है।
काशी की गंगा में अशुद्धियां
आपको बता दें कि काशी में बहने वाली गंगा के जल का अध्ययन किया गया तो उसमें फॉस्फेट, अमोनियम और भारी धातुओं की अशुद्धियों से दूषित पाया गया।
मनुष्य पैदा रहा है गंगा के पानी में प्रदूषण
गंगा नदी में हो रहा प्रदूषण मनुष्य की करतूत का ही परिणाम है। फैक्ट्री का गंदा पानी और मल-मूत्र वाला पानी इसमें बहाया जाता है। गंगा को साफ रखने की करोड़ों योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बनारस से बहने वाली गंगा और उसके पास दूसरे जिलों से बहकर आने वाली गंगा नदी प्रदूषण (Ganga river pollution) से घिरी हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक काशी में गंगाजल आचमन और स्नान के लायक भी नहीं रह गया है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के द्वारा एक शोध से यह जानकारी निकाल कर आ रही है। यह आंकड़ा बहुत चौंकाने वाला है। फास्फेट अमोनियम और दूसरी भारी धातुओं के कारण गंगा का पानी प्रदूषित (POLLUTED) हो चुका है। इसके अलावा इस शोध में बताया गया है कि कई जगहों पर सीवेज और ट्रेन का पानी भी गंगा में गिरता है जिस कारण से गंगा में फीकल मैटर जिसे मल-जल कहते हैं। इसकी मौजूदगी भी मिली है।
भू पर्यावरण और धार्मिक विकास संस्थान की एक शोध रिपोर्ट
आपको बता दे की भू पर्यावरण और धार्मिक विकास संस्थान की एक शोध रिपोर्ट आई है। फैक्ट्री का गंदा पानी और मल मूत्र गिरने वाले स्थान में वाराणसी के गढ़वा घाट रामनगर और अस्सी घाट है। यहां पर फास्फेट की मात्रा 0.5 पीपीएम (1 पीपीएम यानी 1 मिग्रा. प्रति लीटर) और सीवेज गिरने के स्थान रामनगर के आसपास 2.7 पीपीएम बताई गई है।
फास्फोरस वाला जल सेहत के लिए खतरनाक
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पानी में फास्फोरस बिल्कुल नहीं होना चाहिए जबकि अमोनिया की मात्रा 17 मिली है। बनारस के रविदास घाट और शहर के बाहर निकलने वाले राजघाट के अलावा रामनगर में गंगा के किनारे भूजल में नाइट्रेट और सल्फेट की मात्रा who मानक से ज्यादा है। जिसका असर गंगा के जल पर भी पड़ता है। यही कारण है की गंगा के जाल में प्रदूषण की मात्रा बहुत तेजी से बढ़ रही है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के शोध में मुहाने से 1500 मीटर नीचे तक सैंपल लेकर जांच की गई थी। यह जानकर आश्चर्य होगा कि पानी में भारी धातु में खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
जानकारी के मुताबिक के गंगा पर रिसर्च कर रहे हैं, भू के प्रोफेसर जितेंद्र पांडेय ने मीडिया को बताया कि भारी धातुओं की कटिंग के बाद यह गंदा जल अपशिष्ट के रूप में नाले आदि के रास्ते बहकर गंगा में पहुंच जाते हैं। यह गंगा जल (Ganga water) को प्रदूषित करते हैं।
गंगा में मल-जल की उपस्थिति
एक खबर के मुताबिक आईआईटी के प्रोफेसर और संकट मोचन मंदिर के महंत बताते हैं कि काशी में गंगा के सभी 84 घाटों पर मल-जल की उपस्थिति मिली है। जिसका कारण यह बताया गया कि घरेलू सीवेज का गंगा में घुलकर मिलना है। इस वजह से घाट के गंगाजल आचमन के योग्य नहीं है। गंगा जल को स्वच्छ रखने की सबसे बड़ी समाधान इसमें मल मूत्र न मिले जाए यानि सीवर पर रोक लगाना जरूरी है। लेकिन पिछले 10 साल से इस पर काम ढंग से नहीं हो पाया है।
फास्फोरस होता है खतरनाक सेहत के लिए
गंगाजल में फास्फोरस की मात्रा बनारस से घाट ओके किनारे गंगाजल में बहुत अधिक पाई गई है। यह सेहत के लिए बहुत खतरनाक है। डॉक्टरों की माने तो फास्फोरस के अधिक मात्रा से शरीर के कोमल अंगों को नुकसान पहुंचता है। फास्फेट हड्डियों से कैल्शियम निकाल देता जिससे ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा रहता है।