paryavaran pradushan Kavita nai samkalin Hindi kavita paryavaran jungle हिंदी भाषा में समकालीन नई कविता जिसे समकालीन कविता भी कहा जाता है उसका दौर चल रहा है। अलग-अलग पत्र पत्रिकाओं में इस तरह की कविताएं आपको देखने को मिलती हैं।
इंटरनेट के इस युग में नई तकनीक के साथ मेल और आधुनिक के जीवन के इस सुविधा भरे जीवन और समस्याओं का हाल खोजती हुई, समकालीन कविता एक नया पैटर्न लेती हुई नजर आती है। नई कविता में भाषा की समर्थकता तो है ही, इसके साथ अभिव्यक्ति की पूर्ण अधिकारिता भी है। पर्यावरण की समस्या पर आधारित नई कविताएं आपको मिल जाएगी लेकिन यहां पर पर्यावरण से संबंधित जंगल पर आधारित तीन कविताएं कई सवाल खड़ा करती हैं?
अभिषेक कांत पांडेय की ये तीन कविताएं पर्यावरण समस्या से संबंधित बात को नए तरीके से रचती हुई नजर आती है। समकालीन कविता में इंटरनेट जगत में छाई हुई इन कविताओं के बारे में पढ़ें-
जंगल (कविता)
सुबह खाने में हरी सब्जी
दोपहर खाने में हरी सब्जी
रात को भी हरी सब्जी
अभी खाकर टहल रहा हूं
एक तरफ दूर तक मेरे घर से नजर आता है जंगल दूसरी तरफ दूर से नजर आता है शहर
शहर जाने वाले रास्ते पर दूर से दिखाई देती हैं ताश के पत्तों की तरह बिल्डिंगे
जैसे दौड़ पड़ी हो मेरी ओर
जंगल से बदला लेने के लिए
जंगल डरा हुआ है।
अभिषेक कांत पांडेय
ठंड ने लगा दी ध्वनि प्रदूषण पर लगाम (कविता)
इधर कुछ हफ्तों से ठंड ज्यादा है
गली मोहल्ले में शोर शराबा कम है
तेज चलने वाली बाइक की गति ठंड ने रोक रखी है
सीधी सी बात है हार्न का शोर और डीजे कपकपाहट
जो वातावरण में सीधा ध्वनि प्रदूषण का कारण है
उस पर ठंडी लगाम लगा रखी है किसी कानून की तरह
ठंड आहिस्ता-आहिस्ता चला जाएगा
शोर उतना ही तेज बढ़ता गली मोहल्ले और आपके घरों में आता चला आएगा,
यह बात और है कि बिजली की खपत गर्मियों से ज्यादा ठंड में है
एसी से ज्यादा हीटर अपनी भूमिका निभा रहे हैं
हीटर पर अपनी उंगलियां सेंकते हुए कोई लिख देगा ऐसे ही कविताएं,
कोई मोबाइल की स्क्रीन पर पढ़ लेगा ऐसी ही कविताएं,
और ऐसे ही सब कुछ चलता रहेगा ठंड के भरोसे।
सर्च इंजन और जंगल
जैसे ही मैंने अपनी उंगलियों से कुछ टाइप किया बात नहीं बनी
बोलकर मैंने खोज लिया एक शब्द जंगल
इंटरनेट सर्च इंजन ने दिखा दिया ढेर सारे पेड़ पौधे
मैंने तुरंत फोटो निकाल बेटी को दिखाया
देखो जंगल होता है कुछ इस तरह
छोटी बेटी दौडी भागी छत से ऊपर दूर तलक देख
कहा पापा नहीं दिख रहे हैं जंगल
गूगल ने कैसे दिखा दिया जंगल
मैंने उसे समझाया हम शहरवासी
तो उसने जिज्ञासा भर कहा
नानी के घर जाते समय बीच रास्ते में खेत-खलियान पर कहां दिखते हैं जंगल
मैंने उससे कहा दूर पहाड़ के उस पार ढेर सारे हैं जंगल
उसने कहा मैं नजर दौड़ा कर देखी दूर तलक
मेरे स्कूल के उस पार खूब बिल्डिंगे, नहीं है कोई जंगल
अपनी किताबों को उलटते पलटते 5 साल की बेटी ने जिज्ञासा भरे सवाल पूछे
जंगल दिखता है टीवी में, जंगल दिखता है किताबों में, जंगल दिखता समाज में, पर जंगल नहीं है आसपास
मैं भी सोचा घर से 200 किलोमीटर चलने के बाद आ जाता है कानपुर
अपने घर से दूसरी दिशा में चलते हैं 130 किलोमीटर आ जाता है वाराणसी
कहां रह गया जंगल।
जबकि मैंने इन्हीं रास्तों में अपने बचपन में पाया था ढेर सारे जंगल इन शहरों के बीच में….
गूगल सर्च इंजन में खोजा जाएगा जब-जब जंगल प्रोजेक्ट में लिख दिया जाएगा चित्र बना दिया जाएगा जंगल
तब तक जागेगी नहीं सभ्यता
जब तक एक एक पौधा लगाकर रोपा नहीं जाएगा जंगल
कंक्लुजन
paryavaran pradushan Kavita पर्यावरण कविता के अंतर्गत समकालीन कविता में कई कवियों ने बेहतरीन कविता लिखी है लेकिन यह नई कविता जो समकालीन कविता के अंतर्गत आता है यह तीन कविता है एक नई तरह की बात कहती है और पर्यावरण समस्या को नए तरीके से रखती है। paryavaran pradushan Kavita टॉपिक पर कई कविताएं लिखी जा चुकी हैं आशा है कि यह नई कविता आपको बहुत पसंद आई होगी, यदि आप इस कविता का उपयोग करना चाहते हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।