एकल नाटक ‘कितने टोबा टेक सिंह’ का मंचन

रंगमंच-समीक्षा अभिषेक कांत पांडेय

उर्दू के मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ पर आधारित एकल नाटक ‘कितने टोबा टेक सिंह’ का मंचन 21 जून को प्रयागराज में इलाहाबाद विश्वविद्यालय  के डॉ० ए० एन० झा छात्रावास में किया गया। एकल अभिनय में मलय मिश्र ने शुरू से आखिरी तक अभिनय के माध्यम से कई किरदारों को जिंदा किया।

‘टोबा टेक सिंह’ कहानीकार सआदत हसन मंटो द्वारा लिखी, 1955 में प्रकाशित हुई प्रसिद्ध कहानी है। यह भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दो साल बाद के लाहौर के एक पागलख़ाने के पागलों पर आधारित है। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद लाहौर के पागलखाने में बंद हिंदू और सिख पागलों को हिंदुस्तान के पागलखाने में शिफ्ट किया जा रहा था। मंटो ने इन पागल किरदारों के माध्यम से हिंदुस्तान और पाकिस्तान के विभाजन की त्रासदी पर सवाल उठाया है।  कहानी का एक पागल पात्र जिसका  नाम किशन सिंह है, वह टोबा टेक सिंह नाम के गाँव में रहता था। जब उसे हिंदुस्तान लाया जा रहा था तो  उसने  सिपाहियों से पूछा, तो पता चला की टोबा टेक सिंह नाम का स्थान अब पाकिस्तान देश का हिस्सा गया है। सिख होने के कारण उसे हिंदुस्तान भेजा जा रहा था। उसने जाने से इंकार कर दिया। क्योंकि उसे  टोबा टेक सिंह  जगह से  लगाव था। वह हिंदुस्तान जाने के लिए  तैयार नहीं हुआ। वह चीखने व चिल्लाने लगा। वह शांत होकर वहीं खड़ा हो गया और शिफ्टिंग का काम करने वाले सिपाही अपने काम में व्यस्त हो गएँ।  हिंदुस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर के बीच पूरी रात वह खड़ा रहा। सुबह उनकी चीख सुनकर सिपाही दौड़े और देखा कि वह वही मरा पड़ा है। इस तरह  कहानी का दुखद अंत होता है।

कहानी का नाट्य -रूपांतरण  राजेश कुमार ने किया है। कई किरदारों का अभिनय एक एक्टर के द्वारा करने  की कला एकल अभिनय के नाम से जाना जाता है। यह नाटक एकल अभिनय पर आधारित था। जिसे मलय मिश्र ने बेहतरीन ढंग से निभाया। अलग-अलग पागलों के किरदारों में और फिर लेखक मंटो के किरदार में भी खुद को सहज ढंग से व्यक्त किया है। जो दर्शक इस कहानी से परिचित नहीं थे और पहली बार इस नाटक को देख रहे थे, अभिनेता मलय मिश्र के अभिनय के अलग-अलग फलक  से स्वयं को  नाटक के अन्य पात्रों से सहजता से जोड़  लिया।

 हम जब किसी  महान लेखक की  किसी एक  रचना को नाटक रूप में पहली दफा देखते हैं तो  मन में जिज्ञासा उठती है कि उस लेखक की अन्य रचनाओं से भी रूबरू हुआ जाए। इस सोच को पैदा करने के लिए  इस नाटक ने  दर्शकों के साथ  एक संवाद स्थापित किया  और इसकी सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि  नाटक देखने के बाद  दर्शकों की लेखक मंटो के बारे में जानने  की उनकी उत्सुकता बढ़ गई।
डायरेक्टर नाटक के हर दृश्यों को सुघड़ता से संवारता है ताकि रंगमंच का शिल्प और उसकी सार्थक अभिव्यक्ति दर्शकों के बीच प्रसारित हो सके। इस नाटक के निर्देशक अनिल रंजन भौमिक ने अपने अनुभवों से सशक्त सार्थकता प्रदान किया है।
एकल अभिनय में  बार-बार वही कलाकार और बार-बार उसी वेशभूषा में नाटक के अन्य पात्रों की भूमिका भी उसे निभानी होती है, ऐसे में एकल अभिनेता उन अलग-अलग पात्रों को मंच पर जीवित करता है, यानी दर्शक पात्रों की आत्मचेतना से परिचित होते हैं। पर एकल नाटक अपने सीमित भौतिक संसाधनों के बावजूद भी आम से आम और खास खास दर्शकों के बीच अपनी उपस्थिति छोड़ जाता है। यह नाटक इस नजर से दर्शकों को प्रभावित करने में बहुत ही सफल रहा है।

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