हमारी शिक्षा नीति में सुधार की जरूरत

अभिषेक कांत पाण्डेय
हमारी शिक्षा नीति में सुधार की जरूरत                     
जकल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इधर कान्वेंट और पब्लिक स्कूल के नाम पर तेजी से प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं जहीर है कि हिंदी मीडियम स्कूल में शिक्षा का गिरता स्तर इसके लिए जिम्मेदार है वहीं सरकार की ढुलमुल नीति इसके लिए सबसे अधिक दोषी है।
हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूल की बाढ़ है। कुछ गिनती के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को छोड़ दे तो बाकी सभी स्कूल में आंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले ऐसे छात्र कक्षा आठ तक उनका ज्ञान सीमित ही रह जाता है कारण, अंग्रेजी माध्यम की किताबें स्व:अध्ययन में बाधा उत्पन्न करती है। रिसर्च भी बताते हैं कि प्राईमरी स्तर में अपनी मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं। यही कारण है कि हिंदी भाषा या जिनकी मातृभाषा है वह अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के मुकाबले में तेजी से अपने वातारण से सीखते हैं इसमें सहायक उनकी मातृभाषा के शब्द होते हैं जो उनके शुरूआती दौर में सीखने की क्षमता में तेजी से विकास करता है। यहां इस बात का  अफसोस है कि भारत में अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण प्राईमरी स्तर में बच्चों को आंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाने का चलन जोरों पर है जिस कारण से बच्चे ट्रासंलेशन पद्धति में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
त्तर के दशक में मातृभाषा में शिक्षा देने वाले शुदृध देशी स्कूलों ने होनहार प्रतिभाएं दी। आजकल तो पब्लिक स्कूल की अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा की तकनीक हिंदी—अंग्रेजी खिचड़ी ज्ञान से की जा सकती है। इस तरह प्राईमरी से जूनियर स्तर तक बच्चा कन्फूजिया ज्ञान ही हासिल कर पाता है। आलम यह है कि अंग्रजी माध्यम में विज्ञान, भूगोल, इतिहास आदि के प्रश्नोत्तर को अंग्रेजी भाषा में रटने की प्रवृति ही बढ़ती है जिससे बच्चों में मैलिकता और रचनात्मकता का अभाव हो जाता है जबकि 6 से 14 साल की उम्र में ही बच्चों में रचनात्मकता का विकास होता है, यहां इनकी रचनात्मकता अंग्रेजी माध्यम की वजह से प्रश्नों के उत्तर देते समय अभिव्यक्ति सार्थक नहीं हो पाती है।
      भारतीय परिवेश में हिंदी भाषा या मातृभषा में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र ज्ञान के स्तर से अच्छे होते कारण स्पष्ट हैं कि कक्षा में रूचि पूरे मनयोग से लेते हैं और इसके बाद घर पर स्वअध्ययन में समय देते हैं। लेकिन मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों के साथ समस्या अंग्रेजी भाषा की शिक्षा में होती है जिस पर अगर ध्यान दिया जाए तो हिंदी माध्यम के छात्र अंग्रेजी के मौलिक ज्ञान को भी प्राप्त कर सकते हैं। इस दिशा पर सरकार कार्य नहीं कर रही है। अंग्रेजी स्पोकेन और उच्चारण संबधित ज्ञान के लिए विषय के रूप में अलग से अ​ब अतिरिक्त कक्षाएं नियमित चलायी जा सकती है।

भारतीय शिक्षा पद्धति संक्रमणकाल से गुजर रही है। वह दिन दूर नहीं की आने वाले समय में हम हिंगिलिश ज्ञान वाले युवा की एक नई पीढ़ी सामने आएगी जो अपनी मातृभाषा को हेय दृष्टि से देखेगी और जो समाज या देश अपनी भाषा व संस्कृति खो देगी तो इसमें काई शक नहीं है कि हम अपनी पहचान और एकता को खो बैठेंगे जो हमारे हजारों सालों की संस्कृति की देन है। भारत क्या अपनी पहचान अपनी तरह से इस विश्वपटल पर नहीं बना सकता है। निसंदेह हम युग निर्माता देश है इसके लिए हमारी सही शिक्षा नीति होनी चाहिए।
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