Last Updated on November 16, 2013 by Abhishek pandey
किताबों में कैद गुजरा वक्त
बेइंतहा ले रहा है।
कुछ कतरन यूं
हवा से बातें कर रहें
बीतने से पहले पढ़ा देना चाहते हैं
हवा को भी मेरे खिलाफ बहका देना चाहते
इस मिट्टी की मिठास
पानी के साथ
मेरी खुशबू बता देना चाहती है।
बे परवाह है इस हुकूमत की धूप
अमीरों के घर पनाह लेती है।
झोपड़ी का चिराग
खेतों तक रौशनी फैला देती है
भटके भ्रमजाल में राहगीर
रास्तें में संभाल लेती है।
रौशनी अंधेरे को चीरती
बगावत की लौ जला देती है।
बेइंतहा ले रहा है।
कुछ कतरन यूं
हवा से बातें कर रहें
बीतने से पहले पढ़ा देना चाहते हैं
हवा को भी मेरे खिलाफ बहका देना चाहते
इस मिट्टी की मिठास
पानी के साथ
मेरी खुशबू बता देना चाहती है।
बे परवाह है इस हुकूमत की धूप
अमीरों के घर पनाह लेती है।
झोपड़ी का चिराग
खेतों तक रौशनी फैला देती है
भटके भ्रमजाल में राहगीर
रास्तें में संभाल लेती है।
रौशनी अंधेरे को चीरती
बगावत की लौ जला देती है।
अभिषेक कांत पाण्डेय
Author Profile
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Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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