कविता क्या होती है

कविता क्या होती हैमुख्यधारा की कविता के अलावा बची खुची खुरचन कविताएं  भी हैं,  जो साहित्य का हिस्सा हो सकती है पर आलोचक की नजर नहीें पडती है, यही है पीडि़त,  छटपटाती, बाहर से जर्जर लेकिन अंदर से मजबूत कविताएं, उनकी या उनके लिए जो मजबूर है,  पिछड़ा है , बिछडा है,  असुर है, असुरक्षित …

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अब मैं कहूं

            अब मैं कहूं ? कुछ भी कहूं न अब क्यों?पीडा मन में लिए रिसता  रहूं पहाडों से,तब भी कुछ नहीं कहूँ। जब तडपता रहूंरेत में तपता रहूंतो क्यों न कहूं? जिस संसार में तुम होउसका मैं हिस्सा हूं।आंखों में मैं आंसू बनूंऔर तुम हंसते रहोतब भी मैं कुछ न …

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प्लाट

कविताप्लाट कुछ दिन बाद यहां बन जाएंगे मकान-दुकानफिर बिकेगा ईमानजब होगी बरसाततो गंगा खोजेगी अपनी जगहनहीं मिलेगा उसका वह जमीन क्योंकि उस पर बन चुके होंगे मकानआखिर थक हार कर वह बहेगीशहरों-नालो से होकरदुकानों, मकानों मेंफिर कोसा जाएगाप्रकृति कोदिया जाएगा नामबाढ़ बाढ़ बाढ़ बाढ़़। अभिषेक कांत पांडेय

समानांतर हिंदी कविता-श्रीरंग

सन 80 के बाद की दलित आदिवासी एवं स्त्री कविता के विशेष संदर्भ में श्रीरंग की ताजा आलोचना पुस्तक समानांतर हिंदी कविता, वास्तव में 80 के बाद की वास्तविक कविता की प्रकृति को प्रकट करती है एक आलोचक के तौर पर श्रीरंग कि यह आलोचनात्मक दृष्टि बिल्कुल पैन है क्योंकि जिस तरह एक समय आधुनिकता …

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