अब मैं कहूं

Last Updated on September 9, 2018 by Abhishek pandey

            अब मैं कहूं

कुछ भी कहूं न अब क्यों?
पीडा मन में लिए रिसता  रहूं पहाडों से,
तब भी कुछ नहीं कहूँ।

जब तडपता रहूं
रेत में तपता रहूं
तो क्यों न कहूं?

जिस संसार में तुम हो
उसका मैं हिस्सा हूं।
आंखों में मैं आंसू बनूं
और तुम हंसते रहो
तब भी मैं कुछ न कहूं।

दुनिया न जान ले तब,
क्या ये मर्यादा मैं ही ढोऊं
आखिर कब तक न कहूं।

परछाई सी होती  जिंदगी
जिंदगी को क्यों ढोऊं?
आखिर कब तक यूं,
उडता रहे मजाक।
अब मैं कहूं?

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

अभिषेक कांत पाण्डेय

See also  सुनील विश्वकर्मा: छोटे गांव से मुंबई के फिल्मों में आर्ट डायरेक्टर तक का सफर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी में बेस्ट करियर ऑप्शन, टिप्स CBSE Board Exam tips 2024 एग्जाम की तैयारी कैसे करें, मिलेगा 99% अंक