बदलना जारी

 बदलना जारी        नई कविता  अभिषेक कान्त पाण्डेय  बदलना जारी  मोबाइल रिंगटोन आदमी  धरती मौसम  आकाश, सरकारी स्कूल  कुआँ उसका कम होता पानी  चौपाल  फैसला  रिश्ते  इंजेक्शन वाली लौकी और दूध  गरीबी गरीब  आस्था प्रसाद  प्रवचन भाषण  नेता अनेता  पत्थर गाँव का ढेला  ओरतें  कामयाबी  साथी एकतरफा प्यार  भीड़ हिंसक चेहरा  सूरज थकता नहीं …

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जूठे मन

कविता जूठे  मनकुछ हिस्सा जीवनबदरंग आदमीसोचकृत्यराजधानीलगातार बार बारजंगल में तब्दीलसड़क से संसद। गलत गलतचश्मे वाली आखों सेदेसी वादेउतरे -नहींहज़म सबख़त्म खेल।पुराने मन मेंनयापननहीं नहींभ्रम समझवही राजधानीजंगलसड़क से संसदचेहरे मोहरेबदरंग आदमीबहुरे छत,हत -प्रतबुझा मनवहीं चश्मे वाली नंगी ऑंखेंलुटेरासीधा-साधाकरोडों खाली पेटतैरती दुगनी आंखेउठाते इतने सिर।कहीं अरबों की डकारबडा  थैलाअसरदार मुखियाटाले  नहींहजारो घोटाले।           …

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चलो मन गंगा जमुना तीरे

संगम शब्द के  उचारण मात्र से हमारे मस्तिष्क में महाकुम्भ की तश्वीर तैर उठती है। इस समय संगम क्षेत्र अपने पूरे रोवाब में है। हर जगह यहाँ संत, महत्मा, आमजन, स्त्री, पुरुष, भजन-कीर्तन -आरती, प्रवचन के साथ पूरी धरा की संस्कृति के साथ भारतीय संस्कृति  का संगम हो रहा है –    संगम स्नान में ऐसा सुख…

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