‘असुर आदिवासी’ पुस्तक असुर आदिवासी जनजाति जनजीवन और सामाजिक पहलुओं पर पड़ताल करती पुस्तक

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 हिन्दी साहित्य जगत के प्रख्यात लेखक व कवि  (एडवोकेट) श्रीरंग पांडेय जी की नयी  पुस्तक ‘असुर आदिवासी’ अमेजॉन पर ऑनलाइन उपलब्ध है।
 
यह पुस्तक एक नया शोध का ऐसा दस्तावेज है, जो अब तक हाशिए पर रहे समाज की सच्ची दास्तां सुनाती है। 
 
‘असुर आदिवासी’ किताब के जरिए उन असुर आदिवासी जनजातियों के बारे में इनके सही इतिहास को प्रस्तुत करने वाली इस तरह की पुस्तक की जरूरत हमेशा पाठकों और विद्वानजनों को रही है।
 
इस पुस्तक में खो गए इन जातियों के ऐसे  सामाजिक परिदृश्य को सही ढंग से बताया गया है, जिसके इतिहास को लगभग भुला दिया गया है।  
पाठकों और विद्वानजनों के  ज्ञान में यह पुस्तक अवश्य अभिवृद्धि करेगी। 
 ‘किताब एक सच्चा दोस्त होता है।”
अमेजॉन पर पुस्तक ‘असुर आदिवासी’  उपलब्ध है, अमेजॉन से ऑनलाइन पुस्तक मँगाने के लिए क्लिक करें

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असुर आदिवासी पुस्तक के लेखक श्रीरंग पांडेय जी के फेसबुक वॉल पर जाने के लिए लिंक क्लिक करें

 
उर्दू बाजार डॉट इन से भी आप खरीद सकते हैं। इसका लिंक नीचे दिया है, वहां पर इस पुस्तक के बारे में दिया गया सिनॉप्सिस लिखा हुआ है-
 
इस किताब की ऑनलाइन सिनॉप्सिस नीचे दिया गया है-
 

विलुप्ति के कगार पर खड़ी भारत की एक सबसे प्राचीन मानी जानेवाली असुर आदिवासी जनजाति पिछले दिनों काफी चर्चा में रही है। अपनी कुछ खास विशेषताओं, मान्यताओं और कुछ खास माँगों के कारण इसने सभ्य समाज का ध्यान अपनी ओर आर्किषत किया है। दरअसल इस असुर जनजाति के लोग लौह अयस्क को खोजनेवाले तथा लौह धातु से हथियार आदि निर्माण करनेवाले विश्व की चुनिन्दा जनजातियों में से एक हैं। ये लोग अपने को पौराणिक असुरों का वंशज मानते हैं। पिछले दिनों ये चर्चा में तब आए जब इनके कुछ बुद्धिजीवी कार्यकत्ताओं ने यह माँग उठायी कि दशहरा में दुर्गा की महिषासुर र्मिदनी की जो प्रतिमा लगायी जाती है तथा उसमें उन्हें जो हिंसक रूप में दिखाया जाता है और महिषासुर का भीभत्स तरीके से वध करते हुए दिखाया जाता है उससे उनकी भावना को ठेस पहुँचती है। यह उनके पूर्वजों का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण असुर आदिवासी समुदाय का अपमान है। सभ्य समाज के लिए ऐसा वीभत्स और अभद्र अमानवीय प्रदर्शन सभ्यता के विरुद्ध है। इसलिए इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।

 

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