भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, इंदिरा गांधी के बचपन में देशभक्ति का जज्बा Bhagat Singh, Chandrashekhar Azad, Indira Gandhi’s childhood patriotic spirit

भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, इंदिरा गांधी के बचपन में देशभक्ति का जज्बा

Bhagat Singh, Chandrashekhar Azad, Indira Gandhi's childhood patriotic spirit 

देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की परवाह नहीं कि उनके संघर्ष और समर्पण की वजह से आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर आजादी के लिए संघर्ष करने वाले उन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने बचपन में ही भारत की आजादी में हिस्सा लिया और बड़े होकर भारत माता के सच्चे सपूत कहलाएँ।

 

आप तो जानते हो कि हमारे देश में अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक शासन किया उनके शोषण और अत्याचार से हर भारतीय त्रस्त थे।

 बड़े तो बड़े बच्चे भी उस समय भारत की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। महात्मा गांधी भारत की आजादी के संघर्ष के नायक थे। बच्चे उनसे बहुत प्रभावित थे और आजादी के लिए असहयोग आंदोलन में भी हजारों बच्चों ने हिस्सा लिया। नन्हें मुन्ने बच्चे महात्मा गांधी के कहने पर विदेशी कपड़ा विदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल का बहिष्कार करने में बड़ों के साथ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 

भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और इंदिरा गांधी के बारे में आप जानते हैं, बचपन में आजादी के आंदोलन में शामिल होकर कैसे अपना योगदान दिया। Bhagat Singh, Chandra Shekhar Azad and Indara Gandhi Childhood Story of patriotic spirit in hindi

 

भगत सिंह का बचपन 

आइए जानें भगत सिंह के बचपन के बारे में- भगत सिंह Bhagat Singh ke bhachpan ke bare me  का जन्म 27 सितंबर 1960 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गांव में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता सरदार किशन सिंह अंग्रेजो के खिलाफ थे। आजादी के लिए संघर्ष करते थे इसीलिए वे कई बार जेल भी जा चुके थे। भगत सिंह को बचपन से ही अंग्रेजों से नफरत थी। वे भारत को आजाद कराने के सपने में खोए रहते थे। जब वे 3 साल के थे तो खेत में जाते और मिट्टी के ढेर बनाकर उस पर छोटे-छोटे तिनका लगा देते थे। उनसे जब पूछा गया कि ऐसा क्यों करते हो तो वह बताते थे कि नए बंदूकें उगा रहा हूं क्योंकि मैं अपने देश को आजाद कराना चाहता हूं।

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दोस्तों के साथ खेलते समय भगत सिंह हमेशा दो टोलियां बना लेते थे। एक टोली दूसरे टोली पर आक्रमण करता था और यह खेल उन्हें बहुत पसंद था। भारत में अंग्रेजों ने रोलेट एक्ट नाम का नया कानून भारतीयों पर थोपा। यह कानून भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों और जनता में राष्ट्रीय भावना को कुचलने वाला अंग्रेजों का काला कानून था। जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया।

 इन सब का प्रभाव 13 साल के भगत सिंह पर पड़ा। वे 1919 में रोलेट एक्ट के विरोध में आंदोलन में शामिल हो गए। लेकिन 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग की घटना हुई। जहां पर हजारों निहत्थे लोगों की हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद भगत लाहौर से अमृतसर पहुंचे। देश पर मर मिटने वाले शहीदों को उन्होंने श्रद्धांजलि दी और वहां की मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया। जिससे सदैव याद रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है। जलियांवाला बाग घटना के बाद भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए क्रांतिकारी रास्ता अपनाया। 18 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बिना नुकसान पहुंचाने वाला बम फेंककर अंग्रेजों के कानून का विरोध किया। इसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली। 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी दे दी।


चंद्रशेखर आजाद का बचपन

चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad ) का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में हुआ था।  उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगदानी देवी था। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे। यही गुण  चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे। चंद्रशेखर आजाद 14 साल की अवस्था में बनारस गए और वहां संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था।

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 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े गए। वे गिरफ्तार हुए और जज ने उनके बारे में पूछा तो बिना डरे बोले, मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और जेल को अपना घर बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर को के वार के साथ उन्होंने ‘वंदे मातरम’ और ‘महात्मा गांधी’ की जय के नारे लगाए। जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ तब आजाद उस तरफ खिंचे चले गए। अंग्रेज उनसे परेशान रहते थे। उन्होंने संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी।

 27 फरवरी 1931 को जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों ने उन्हें घेरा तो वे उनसे लड़ते रहें और अपने संकल्प को पूरा करते हुए आखरी बची गोली से खुद को मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी।

 आज हम अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा सकते हैं, जो चाहे कर सकते हैं, क्योंकि हम आजाद हैं और इस आजादी के लिए वीरों ने अपनी आहुति दी है, पर जब स्वतंत्रता सेनानियों के नाम बताने की बारी आती है तो हम सिर्फ गिने-चुने नाम ही बता पाते हैं, जबकि हकीकत यह है कि आजादी सिर्फ कुछ लोगों के बलिदान से नहीं मिली बल्कि इसके लिए बहुतों ने अपनी जान गंवाई। इनमें से कई तो गुमनामी की अंधेरों में खो चुके हैं। हम आपको ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी- आजादी के गुमनाम नायक

 

इंदिरा गांधी का बचपन

Indara Gandhi इंदिरा गांधी के बारे में तुम जानते ही हो यह हमारे देश की प्रधानमंत्री भी रही हैं। इनका जन्म 19 नवंबर, 1917 को प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था। 

इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और दादा मोतीलाल नेहरू ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके घर में स्वतंत्रता सेनानियों का आना-जाना लगा रहता था। 13 साल की इंदिरा के मन में भारत की आजादी के लिए सब कुछ करने की इच्छा जागी। विदेशी वस्तु गुलामी का प्रतीक थी। उस समय महात्मा गांधी के कहने पर लोगों ने विदेशी कपड़ों और वस्तुओं की होली जलाई। 

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भारतीय आजादी की गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानी

 छोटी इंदिरा ने भी अपनी प्यारी विदेशी गुड़िया आग में डाल दी क्योंकि उन्हें देश की आजादी प्यारी थी। इंद्रा ने बच्चों की वानर सेना बनाई। सभी सदस्यों ने देश की सेवा करने की शपथ ली और वीर इंदिरा अपनी वानर सेना के द्वारा क्रांतिकारियों तक महत्वपूर्ण सूचनाएं पहुंचाती थीं। अंग्रेजों की गलत नीतियों और आजादी की आंदोलन की जागरूकता के लिए उनकी वानर सेना लोगों को पर्चे बांट करती थी। इलाहाबाद यानी प्रयागराज में वानर सेना के 5000 सदस्य थे। इस तरह बालिका इंदिरा ने बचपन में स्वाधीनता के संघर्ष को समझ लिया था। वे भारत को आजाद देखना चाहती थी।

भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह और  भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी  जी के बचपन के बारे में आपको उपयोगी नॉलेज मिला होगा।  जानकारी अच्छी लगी होगी तो  शेयर करें और कमेंट जरूर करें।

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