माटी के लाल की बातें

Last Updated on August 29, 2013 by Abhishek pandey माटी के लाल की बातेंकहां जाएं हम इस डगर में, इस शहर में सड़कें नहीं।मंजिल है मुसाफिर भी है, वो मुस्कान नहीं।वो यादें नहीं, वे तन्हाई नहीं,बिक गई वह मुस्कान यहीं।न जाने मेरी वो तन्हाईयां कहां,न जाने मेरी वो यादें कहां।ढूंढता हूं मैं उस उजड़े रास्तों…

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मेरा शहर कूड़े में तब्दील

Last Updated on August 23, 2013 by Abhishek pandey मेरा शहर कूड़े में तब्दील     http://prakharchetna.blogspot.in/ इलाहाबाद। शहर सभ्यता के प्रतीक हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता शहरी थी। चारों ओर पक्की नालियां पक्के मकान, कूड़े फेंकने का उचित प्रबंध था लेकिन आज मेरा श​हर कूड़े खाने और कचरे में तब्दील हो रहा है। जगह—जगह​ बेतरकीब कूड़े…

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प्याज कहे एक कहानी

Last Updated on August 21, 2013 by Abhishek pandey प्याज कहे एक कहानी जहां प्याज लोगों को रूला रहा है। वहीं प्याज के बढ़ते दाम से व्यापारी लाखों कमा रहे हैं। गरमियों में नासिक की प्याज की औकात थोक में 8 से 10 रूपये थी। मुनाफाखोरी और गैर तरीके से ​थोक व्यापरियों ने जमकर प्याज…

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आजादी में हम

Last Updated on August 13, 2013 by Abhishek pandey आजादी में हम आजादी के 66 साल बाद भी हम आज विकास कर रहे हैं। विकास में हम आज भी गरीबी की परिभाषा केवल जीने से भी बत्तर कर पा रहे हैं। गरीबी, अशिक्षा और खराब सड़कें सबकी हालत राजनैतिक भ्रष्टाचार ने कर दी है। हम…

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मुसीबत की चाभी सच्चा दोस्त

Last Updated on August 4, 2013 by Abhishek pandey हमें उम्र के पड़ाव में एक ऐसे इंसान की जरूरत होती है जो हमारे सुख दुख को समझे उसे ही दोस्त कहते हैं। श्रीकृष्ण ने ​सुदामा से अपनी मित्रता निभाई। अमीर—गरीब, जाति व धर्म के बंधन से परे है दोस्ती। इस दुनिया में भीड़ होने के…

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संविदा शिक्षक की परेशानी और हल किस्तों में मिला

Last Updated on July 28, 2013 by Abhishek pandey प्रखर चेतना। मध्यप्रदेश। संविदा शिक्षक की परेशानी और हल किस्तों में मिला। सरकार से उम्मीद लगाए बैठे संविदा शिक्षकों की झोली में समान कार्य के लिए समान वेतन किस्त में मिलेंगे। संविदा शिक्षक की मांग यह भी है कि नई स्थनांतरण नीति लागू होनी चाहिए लेकिन…

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अभी हम तरूणाई है

Last Updated on July 22, 2013 by Abhishek pandey अभी हम तरूणाई हैअभी मंहगाई हैअभी भ्रष्टाचार हैअभी चुनाव हैअभी वादें हैंअभी हम खोखले नहींअभी हम खेल भी नहींअभी हम तरूणाई हैंअभी हम कुछ नहींकल हम हैकल हमारा हैकल हम वोट डालेंगेकल हम फिजा बदेलेंगेहम लोकतंत्र बनेंगे।

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चलो धरा में हरियाली रचे

Last Updated on July 22, 2013 by Abhishek pandey चलो धरा में हरियाली रचे कविता अभिषेक कांत पाण्डेय चलो धरा में हरियाली रचेगगन को न्योतापंक्षियों को बनाये देवतासंदेश देहरियाली कीसपने में हरा भरादिखे गगन से धरापंक्षी तू देख जंगल कितनाबता फिर लगा दूं कई वृक्षबैठ जाना कहींदु​निया तेरी भी। पहाड़ मत हो गंभीरधीरे बहने दे…

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कोयल कूंकेगी अब हर डाली

Last Updated on July 17, 2013 by Abhishek pandey कोयल कूंकेगी अब हर डालीपतझड़ आया पेड़ों के पत्ते झड़तेनया प्रभात, नया जीवन संचार रचतेउदास बैठे कोयल को आसतेज पवन के झोंकों के बादफिर नव संचार बसेगावृक्ष बदलेंगे अपने गहनेफिर आएंगी जंगल की हरियाली। नये पत्ते, नई उमंग के साथकरेंगे वसूंधर का श्रृंगारहवा के साथ खनक…

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