गांधी जी की 153वीं जयंती पर विशेष लेख: पर्यावरण के प्रति जागरूक थे| pradushan per gandhi ke thought| प्रदूषण पर गांधीजी के विचार | hindi nibandh
thought of Gandhi jee on pollution in hindi nibhandh.
उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण स्वार्थ और नैतिक पतन पर गांधी जी ने अपनी पुस्तक द हिंद स्वराज में उन्होंने लगातार हो रही खोजों के कारण पैदा हो रहे उत्पादों और सेवाओं को मानवता के लिए खतरा बताया था। उन्होंने बेलगाम बढ़ रहे आधुनिकीकरण को खतरनाक बताया। गांधी जी का आधुनिकीकरण की सोच प्रकृति nature को साथ में लेकर चलने वाली थी।
प्लास्टिक पर बैन
2 अक्टूबर को सरकार प्लास्टिक से बने प्रोडक्टस के इस्तेमाल पर पाबंदी से जुड़ा अभियान शुरू किया। देशभर में प्लास्टिक से बने बैग, कप और स्ट्रॉ पर सरकार पाबंदी (Plastic Ban) लगाया गया है।
2 अक्टूबर को मोदी सरकार प्लास्टिक से बने 6 प्रोडक्टस के इस्तेमाल पर पाबंदी से जुड़ा अभियान का शुरुआत किया।
भारत में बढ़ते पॉल्यूशन को खत्म करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना बहुत जरूरी है। सरकार के इस कदम से आम लोगों के लिए कई नए बिज़नेस शुरू करने के मौके भी मिलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की है और इस प्रदूषण के खिलाफ उन्होंने अभियान छेड़ दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सराहनीय प्रयास
वायु प्रदूषण पर गांधी की चिंता
गांधी जी का पहला सत्याग्रह 1913 में साउथ अफ्रिका में किया था। गांधी जी की दूरदृष्टि ही थी कि उन्होंने आंदोलन की अगुवाई के समय स्वच्छ हवा लोगों के जीवन का आधार है। उन्होंने उस समय एक लेख में Key To टू Health (स्वास्थ्य ही कुंजी है) एक पूरा चैप्टर लिखा और इसमें हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता के ऊपर, हवा की हमारी जरूरत पर विशेष बल दिया।
आज से करीब 100 साल पहले अहमदाबाद में एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, गांधी जी तो उन्होंने वायु, जल और अनाज-इन 3 चीजों को हर इंसान के लिए जरूरी बताया और यह आसानी से लोगों को उपलब्ध हो इसलिए उन्होंने इसकी आजादी के संबंध में अपनी बात रखी।
हर इंसान को जल वायु और अनाज का अधिकार मिले इसके लिए उन्होंने चिंता व्यक्त की। यह बातें आज भी अदालतों ने इंसान की मूलभूत आवश्यकता बताया।
सभी के लिए फूड सिक्योरिटी बिल और स्वच्छ वायु जल मिले इसके लिए कानूनी प्रावधान पर बहस आज के समय पर होना लाजमी है। गांधी जी ने अपने विचारों में रखा था, रेंज विचारों से दुनिया प्रभावित है।
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गांधीजी का स्वदेशी सोच पर्यावरण संरक्षण के लिए संरक्षक है
गांधी जी ने भी कई अवसर पर यह लिखा है कि मनुष्य अपनी भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 15 या 20 किलोमीटर से ज्यादा दूर के संसाधनों का प्रयोग करेंगे तो प्रकृति की जो अर्थव्यवस्था है, वह नष्ट हो जाएगी। गांधीजी का स्वदेशी चिंतन वास्तव में प्रकृति की अर्थव्यवस्था का चिंतन था जो हमें पर्यावरण संरक्षण की गहरी सोच और संवेदनशील बनाता है। सन 1928 में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि विकास और औद्योगिक में वेस्टर्न कंट्री का पीछा करना मानवता और पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर देगी।
उन्होंने यह भी कहा कि भगवान न करें कि भारत सभी पश्चिमी देशों की तरह औद्योगीकरण अपनाना पड़े। कुछ किलोमीटर के एक छोटे से देश इंग्लैंड आर्थिक साम्राज्यवाद ने आज दुनिया को उलझाकर रखा है। अगर सभी देश इसी तरह के आर्थिक शोषण करने लगेंगे तो दुनिया टिड्डी के दल की तरह हो जाएगी। इससे स्पष्ट है कि गांधीजी पश्चिमी आधुनिकीकरण के खिलाफ थे।
उन्होंने पश्चिमी तरीके से विकास के पैमाने को गलत और प्रकृति का विरोधी ही बताया तो इस तरह हम देखते हैं कि गांधीजी की जो दृष्टि थी वह भौतिक जीवन में अत्यधिक सुख पाने की कामना प्रगति के लिए नुकसानदायक बताते थे और यह सही भी है कि अगर हम लगातार ऊर्जा का इस्तेमाल करते रहेंगे तो एक न एक दिन हमें प्रकृति के भयानक रूप को देखना पड़ेगा।
वर्तमान में यह स्थिति है कि कार्बन उत्सर्जन को लेकर कोई भी देश गंभीर नहीं है। सभी को विकास की चिंता सताए हुए हैं। जबकि स्थिति यह है कि धरती का ग्लोबल वार्मिंग के चलते समुद्र समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंजिंग के कारण खाद्य पदार्थों की भी कमी हो रही है यह स्थिति आज के समय में और आने वाले समय में और भयानक होती जाएगी इसलिए गांधीजी की विचारधारा को दुनिया अपनाने की ओर आज आगे बढ़ रहा है इस ओर कदम उठाने के लिए 2 अक्टूबर 2019 को गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सिंगल यूज पॉलीथिन के प्रयोग पर बैन लगाने का कदम धरती को बचाने की ओर पहला लोकतांत्रिक कदम है। दुनिया के दूसरे देशों नेवी धरती को प्रदूषण से बचाने की कवायद शुरू की है जो किया सिलसिला अब धरती वासियों की जागरूकता से ही पूरा हो सकता है और सरकार को इसके लिए नए कानून बनाने होंगे।
सुख सुविधा जुटाने की अंधी दौड़ प्रदूषण का कारण है
गांधीजी कारों के खिलाफ से उन्होंने चेतावनी दी कि आधुनिक सभ्यता में यदि इसी तरीके से कारों की संख्या बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं उनसे निकलने वाला कार्बन डाइऑक्साइड हमारे प्रकृति को नुकसान पहुंचाएगा। बात 1938 की है जब गांधी जी को यह बात पता चली कि अमेरिका के उस समय के राष्ट्रपति चाहते थे कि उनके देश के हर नागरिक जय पास दो कारें और दो रेडियो सेट हो तो महात्मा गांधी ने यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि अगर हर भारतीय परिवार में एक कार भी होगी तो सड़कों पर चलने के लिए जगह की कमी पड़ जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हर एक भारतीय कार रखे तो भी एक अच्छा काम नहीं होगा। जाहिर है वे जानते थे कि इस तरह से बढ़ती कारों की संख्या कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादन की दर को बढ़ा देगा और धरती के लिए क्या खतरनाक स्थिति होगी।
जल और वन संरक्षण के लिए गांधी के विचारों की प्रासंगिकता पर लौटना होगा
दुनिया भी मानती है गांधी के विचारों को
गांधीजी की अहिंसा और सरल जीवन शैली से ही बच सकती है धरती
द टाइम मैगजीन ने अपने 9 अप्रैल 2007 के अंक में दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के 21 उपाय बताए थे। उनमें से एक नवा उपाय था, कम उपभोग ज्यादा सामझदारी और सरल जीवन है तो दूसरे शब्दों में कहें कि यह उपाय गांधी जी के विचारों से प्रेरित है।
इस तरह देखें तो गांधीजी मौलिक सोच के व्यक्ति थे जिन्होंने अपने सरल जीवन और अहिंसा वाले विचार को पर्यावरण संरक्षण के लिए भी कारगर माना उनकी मौलिक सोच आज के दौर में प्रासंगिक है बस जरूरत है कि गांधीजी के विचारों को समझना और उसको अपनाना ताकि हमारी धरती और उसका पर्यावरण संतुलित रहे जिससे कि आने वाली पीढ़ियां हमें धन्यवाद देंगे।
क्या है सैक्रेड इकोनॉमिक्स यानी पवित्र अर्थव्यवस्था
क्या है पवित्र अर्थव्यवस्था। क्या आप पवित्र अर्थव्यवस्था पर विश्वास रखते हैं क्या आपने कभी सोचा है कि सेक्रेट इकोनॉमिक्स दुनिया को बदल सकती है। उपभोग की प्रवृत्ति ने और कछुआ खरगोश की दौड़ वाली सोच हम लेकर लगातार इस इकोनॉमिक्स में एक दूसरे की टांग खींच रहें। इसके बावजूद दुनिया में आधी से ज्यादा आबादी के पास न खाने का भोजन है और ना ही पहनने के कपड़े और ना जीने की आजादी। कुछ लोगों के पीछे भागने वाला यह दुनिया का अर्थशास्त्र हमारा दुश्मन हो गया है। आइए चलते हैं सेक्रेट इकोनॉमिक्स की शरण में
गांधी जी ने भी अपने विचारधारा में एक ऐसी अर्थव्यवस्था की बात कही थी, जहां पर सभी का विकास हो सके यानी कि यहां पर एक दूसरे की टांग खींचने वाली प्रवृत्ति नहीं होगी, इस अर्थव्यवस्था में।
लगभग इसी कॉन्सेप्ट को पवित्र अर्थव्यवस्था के नाम से जाना जाता है। चार्ल्स आइंस्टीन ने गांधीजी के उस विचारधारा को एक नए नजरिए से पेश किया है। वे बताते हैं कि मुद्रा की जो अर्थव्यवस्था है वह एक म्यूजिकल कुर्सी की दौड़ की तरह है। मान लीजिए कि 55 कुर्सियां है लेकिन दौड़ लगाने वाले 60 लोग हैं यानी कि इनमें से 5 लोगों को कुर्सी में बैठने का मौका नहीं मिलेगा और वे इस प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगे। यानी यहां पर 60 लोगों के बीच अर्थव्यवस्था का छीना झपटी का जंग जारी होगा। और इस सीधा झपटी में केवल 55 लोगों के हाथ में ही मौके आएंगे। इस तरह इस म्यूजिकल चेयर गेम में बिल्कुल अर्थव्यवस्था की तरह वाली स्थिति होती है कि इंसान के काम छिल जाने का भय बना रहता है जिस कारण से वह व्यक्ति संघर्ष करता रहता है और मानव जाति का एक अवसाद की ओर बढ़ता चला जाता है।चिंता, तनाव व असंतुष्टि का भाव आज के मॉडर्न अर्थव्यवस्था की देन है।
की पवित्र इकोनॉमिक्स में गिफ्ट इकोनामिक्स की बात कही गई है। जहां पर हर व्यक्ति को कहीं ना कहीं संतुष्टि मिलती है। वह व्यक्ति समाज से जुड़ा रहता है। पवित्र इकनॉमिक्स यह मानती है कि इस सृष्टि में कोई भी व्यक्ति आया है, उसके लिए कुछ ना कुछ करने के लिए है। इसके लिए मुद्रा (money) आधारित संघर्ष न हो बल्कि मुद्रा अर्थशास्त्र विज्ञान के साथ मिलकर एक पवित्र उद्योग की स्थापना करता है यह कह सकते हैं कि पवित्र इकोनॉमिक्स सबको लेकर चलने वाला अर्थशास्त्र है।
पवित्र अर्थव्यवस्था पैसे को लेकर संघर्ष की स्थिति पैदा नहीं करती है। आज की इकोनामिक्स यानी मॉडर्न इक्नामिक्स उद्योग जगत में बेरोजगारी और लूट की सबसे बड़ी स्थिति पैदा करती है। अमीर और गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती गई। गांधीजी का भी यही मानना था कि हमें ऐसी सर्वोदय यानी सबके उदय वाली अर्थव्यवस्था का विकास करें जो हमारे गांव और कुछ किलोमीटर के दायरे में कच्चे माल से तैयार उपयोग वस्तुओं को वहां के लोगों द्वारा प्रयोग किया जाए। ताकि स्थानीय लोगों को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध हो सकें। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि लगभग पवित्र इकोनॉमिक्स गांधी के विचारधारा को भी लेकर चलती है। पवित्र इकोनॉमिक्स की राह में भारत पथ प्रदर्शक बन सकता है। यानी कि संसाधनों का प्रयोग आपस में बैठकर सभी मनुष्यों के लिए प्रयोग में होना चाहिए भारत की संस्कृति में सामंजस्य की सबसे बड़ी सीख है जो सारी दुनिया जानती है। उधर विदेशों की मल्टीनेशनल कंपनियों ने जिस तरीके से 90 के दशक में प्रतियोगिता को बढ़ाया जिस कारण से खुद अमेरिका जैसे देश आर्थिक मंदी को झेल चुके हैं।
पवित्र इकोनॉमिक्स एक तरफ से गिफ्ट इकोनॉमिक्स है, जहां पर सभी लोगों में समान रूप से संसाधनों को बांट कर उन्हें रोजगार दिया जा सकता है इस तरह से देखा जाए तो चारों तरफ खुशहाली आती है। और जो आपसी संघर्ष और प्रतिस्पर्धा में दूसरे की टांग खींचने की प्रवृत्ति है उस कारण से होने वाले अमानवीय घटनाओं पर भी रोक लगेगी इसलिए पवित्र अर्थव्यवस्था की मांग भारत में भी उठने लगी है। दुनिया के कई छोटे देश पवित्र इकोनॉमिक्स को अपना रही हैं।
सेक्रेट इकोनॉमिक्स यानी पवित्र अर्थव्यवस्था के विचारक चार्ल्स आइंस्टाइन।