Last Updated on March 22, 2011 by Abhishek pandey
मन का अंकुर फूट जाने तक
मई प्रतीक्षारत हूँ
अपने अस्तित्व के प्रति
ध्यैय है मुझे मिटटी के व्यवहार से,
जल के शिष्टाचार से
अंकुरित होने तक
अपने अस्तीत्व के प्रति
मझे सावधान रहना है
आंकना है मुझे
मिटटी में जल की संतुलित नमी को
asntulit होने पर
मै सड़ सकता हूँ
पुराने विचारो के दीमक मै
कहीं मैं दब न जाऊं
नवीनता अवशोषण मै
अंकुरित होने से पहले
सत्य की प्रकाश
मुझे बचा सकती है
टूट जाने से पाले
फूटने दो मेरे मन का अंकुर
मुझे santulit होने दो
vecharo के bech me
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Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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