तू दीप बन

Last Updated on October 31, 2013 by Abhishek pandey



तिमिर घना 
बन दीप 

ज्ज्वल सा मन

मन का दीप।

सोच नया

सच नया

माटी के दीप।

चहू प्रकाश बन

धन से मन से

तू देश बन

चमक मन

धरा का कर्ज

तू दीप बन

प्रकाश बन

बिन सूरज के चमक

चांद से भी धवल 

तू बन 

बन तू शिक्षा का दीप

फैला उजाला 

ज्ञान बन तू

दीप बन 

भविष्य बन हर जीवन का।

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