Last Updated on March 12, 2017 by Abhishek pandey
अभिषेक कांत पाण्डेय भड्डरी
उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत कई मायनों में अलग है। इस बार जनता ने जाति व धर्म से उपर उठकर वोटिंग किया। अब तक जिस तरह से जाति व धर्म के ध्रुवीकरण की गणित के जरिये किसी पार्टी के वोटर गिने जाते रहे हैं, वहीं उत्तर प्रदेश की जनता ने राजनैतिक पार्टियों को लोकतंत्र का सही मतलब बतला दिया। किसी खास जाति वर्ग के चंद लोगों को लाभ देकर, उस जाति वर्ग व धर्म को वोटबैंक समझने की सोच में जीने वाले नेताओं की सोच पर भी यूपी की जनता ने करारा जवाब दिया। इस चुनाव में जनता ने बता दिया कि जाति व धर्म में बांटकर राजनीति करनेवालों के लिए भारत की राजनीति में कोई जगह नहीं है। बीजेपी की तरफ हर वर्ग जाति व धर्म के लोगों का झुकाव इसलिए बढ़ा कि वे अब तक की जातिगत पॉलिटिक्स से उब चुके थे। भारत की जनता नागरिक के तौर पर अब अपना अधिकार मांग रही है, उसे रोजगार, सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा व सम्मान चाहिए। वे खुद को जाति में बंटना पसंद नहीं कर रही है। किसी राजनीति जाति के वोट बैंक की तरह खुद देखना पसंद नहीं करना चाहती है। सच में यह बदलाव बहुत बड़ी है लेकिन अफसोस है कि भारत की अधिकांश राजनीति पार्टी जनता के मन की बात नहीं समझ पाये। उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव में यहां की जनता ने बात दिया कि चंद बुद्धिजीवी व पत्रकार जो राजनैतिक दल के पिछलग्गू बनकर जाति व धर्म की राजनीति को बढ़ावा देते हैं, उन्हें भी करारा जवाब दिेया है। जनता ने इस चुनाव में बता दिया कि जो काम करेगा, हम उसे चुनेंगे और जो काम नहीं करेगा उसे हम बाहर कर देंगे।
नोटबंदी जैसी साहसिक कदम को जनता ने हाथोहाथ लिया और इस साहस को उसने खुद के भले का फैसला पाया। यह समझ आसानी से उनके समझ आया कि नोटबंदी जैसे कदम उठाने के लिए बड़े राजनैतिक साहस की जरूरत होती है। इसका श्रेय प्रधान नरेंद्र मोदी को मिला जिससे उनके नेतृत्व् को जनता सही माना। वहीं नोटबंदी को लेकर विपक्ष का हमलावर होना जनता को रास नहीं आया। वहीं अखिलेश यादव ने को युवा होने के नाते उत्तर प्रदेश की जनता ने उन्हें मौका दिया लेकिन जातिवाद व तुष्टिकरण के चश्मे से वे वहीं पारम्परिक राजनीति ही की। केवल वर्ग विशेष की राजनीति के चलते, उनके काम को जनता ने नकार दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम से ही पता चलता है कि अखिलेश यादव के काम को यूपी के जनता ने नकार दिया था। इसके बावजूद भी समाजवादी पार्टी रणनीति में कोई बदलाव नहीं हुआ। जाति और धर्म के चश्में में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश का चुनाव ही लड़ा जिस कारण से उनकी सबसे बड़ी हार हुई। लोकसभा 2014 के चुनाव से भी इन्होंने सबक नहीं लिया। जाहिर है जनता अब खुद को जातिगत व धर्म के पैमाने पर खुद को नहीं बांटना चाहती है। उसे ऐसा नेतृत्व चाहिए जो सबकी विकास की बात करें। भाजपा के नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को भारत की जनता के साथ पूरी दुनिया के लोगों ने भी पसंद किया है।
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Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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