मानव बनों

Last Updated on June 27, 2013 by Abhishek pandey

मानव बनों

हम जाग गए सवेरा हो गया
कल रात का मंजर
अभी भी है
सुनसान चीखें
बहती पानी के साथ आवाजें
जिंदा शब्द हिलना डुलना में तब्दील
गड़गड़हाट ध्यान से सुन सैलाब नहीं
अब हेलीकाप्टर
उम्मीद खोने के बाद जागने की
हालात देश में
देव भूमि से बत्तर
बच्चे ने बताया
हम कट रहे
काट रहे पेड़।

दिल्ली से
देवभूमि
लाओं उनकों
बताओ
प्र​कृति क्या है
            अभिषेक कांत पाण्डेय

See also  international men day poetry in hindi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी में बेस्ट करियर ऑप्शन, टिप्स CBSE Board Exam tips 2024 एग्जाम की तैयारी कैसे करें, मिलेगा 99% अंक